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हरियाणा में 50% सीटें जीतीं पार्टियां, क्या 0 पर सिमटेंगी:लोग बोले- चौटाला परिवार ने सिर्फ बंगले बनवाए, इनेलो-JJP अब खत्म

ग्राउंड रिपोर्ट

हरियाणा में 50% सीटें जीतीं पार्टियां, क्या 0 पर सिमटेंगी:लोग बोले- चौटाला परिवार ने सिर्फ बंगले बनवाए, इनेलो-JJP अब खत्म

जींद, चंडीगढ़ और सिरसा11 घंटे पहलेलेखक: उत्कर्ष कुमार सिंह

‘चौटाला को वोट दिया। दुष्यंत को भी वोट दिया, लेकिन देवी लाल जैसा इंसान नहीं मिलेगा। ये सब आज भी देवी लाल के नाम पर वोट मांगते हैं। इन्होंने झूठे वादे करके सरकार तो बनाई, लेकिन एक भी पूरा नहीं किया। दुष्यंत चौटाला ने कोई काम नहीं किया है। इस बार वो उचाना से 2 हजार वोट भी नहीं पाएंगे।’

हरियाणा के जींद जिले के उचाना खुर्द गांव के रहने वाले कुलदीप पूनिया जननायक जनता पार्टी (JJP) से नाखुश हैं। वे कहते हैं, ‘इस बार तो यहां कांग्रेस की ही सरकार बनेगी।’ डिप्टी CM रहे दुष्यंत चौटाला के विधानसभा क्षेत्र उचाना में दुकान चलाने वाले सुनील कुमार भी JJP की वादाखिलाफी से नाराज हैं।

हरियाणा में विधानसभा की 90 सीटों पर एक फेज में 5 अक्टूबर को वोट डाले जाएंगे। इस चुनाव में पहली बार रीजनल पार्टियां अपना वजूद की लड़ाई लड़ रही हैं। 2018 में इंडियन नेशनल लोकदल से निकली JJP 2019 के विधानसभा चुनाव में किंगमेकर बनी थी। दुष्यंत चौटाला उपमुख्यमंत्री बने, लेकिन लोकसभा चुनाव तक हालात बदल गए।

2024 के लोकसभा चुनाव में JJP को 1% से भी कम वोट मिले। विधानसभा चुनाव आते-आते पार्टी के 10 में से 7 विधायक पार्टी छोड़कर जा चुके हैं। वहीं, इनेलो को महज 1.74% वोट मिले। साल 2000 में इनेलो ने 47 सीटें जीत कर सरकार बनाई थी। कांग्रेस 21 और BJP 6 सीट पर ही सिमट गई थी।

हरियाणा विधानसभा चुनाव को लेकर रीजनल पार्टियों की क्या तैयारी है। आखिर क्यों इन पार्टियों का अस्तित्व खतरे में दिख रहा है। उन्हें लेकर जनता क्या सोचती है? इन सवालों के जवाब तलाशने के लिए दैनिक भास्कर ने इन पार्टियों के समर्थकों, लीडर्स, पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स, सीनियर जर्नलिस्ट और आम लोगों से बात की।

सबसे पहले आम वोटर्स की बात… इनेलो और JJP से नाराजगी, वादा किया, लेकिन काम नहीं हम जींद जिले के उचाना कलां विधानसभा क्षेत्र पहुंचे। यहां उचाना खुर्द गांव में दुकान के बाहर बैठे कुलदीप पूनिया मिले। वे दुष्यंत चौटाला और JJP से नाराज हैं। यहीं दुकान चलाने वाले सुनील कुमार कहते हैं, ‘रीजनल पार्टियों की स्थिति ठीक नहीं है। दुष्यंत BJP के खिलाफ चुनाव लड़कर आए और फिर उसी के साथ गठबंधन कर लिया। किसान आंदोलन में भी वो BJP के साथ खड़े थे, इसलिए उनका विरोध ज्यादा है।’

सुनील बताते हैं कि इस इलाके में इनेलो का भी माहौल नहीं बचा है। वे कहते हैं, ‘चौधरी देवीलाल बढ़िया इंसान थे। उन्होंने जो काम किए, उसके लिए लोग उन्हें हमेशा याद रखेंगे। उनकी अगली पीढ़ी ने बंगले बनाने के सिवाय कुछ नहीं किया, इसलिए आज वो पतन की ओर हैं। दोनों साथ मिलकर चलेंगे, तभी उनकी वापसी की उम्मीद है।’

इसी गांव में मिले बुजुर्ग रामचंद्र कहते हैं, ‘इनेलो-JJP तो खत्म हो गए। हरियाणा में इनके पास टिकट देने के लिए लोग नहीं बचे। अगले 10-20 साल में कुछ बदल जाए तो अलग बात है। अब दुष्यंत चौटाला के पास तो आपको एक आदमी खड़ा नहीं मिलेगा।’ वहीं, रामदिया कहते हैं, ’दुष्यंत ने तो बस पैसा कमाया है। सारे विभाग उसके हाथ में थे।’

इसके बाद हम सिरसा के ऐलनाबाद विधानसभा क्षेत्र पहुंचे। यहां अनाज मंडी के बाहर फलों का ठेला लगाने वाले सुरेंद्र कुमार कहते हैं, ’जब चौटाला साहब की सरकार थी, तब सरकारी अस्पताल, जनता कॉलेज, मणिराम कॉलेज बनवाया। चौटाला साहब जेल चले गए तो परिवार अलग हो गया, इसलिए सीटें कम हो गईं।’

‘अबकी बार आधा परिवार उनके साथ है, 30 से ज्यादा सीटें जीतेंगे और सरकार बनाएंगे। JJP एक सीट नहीं पाएगी, क्योंकि उसने काम ही ऐसा किया है। अगर दुष्यंत जमींदारों के साथ खड़े होते तो उनकी सरकार बनती। अभय सिंह उनके सामने फेल थे।’

मंडी में ही चाय की दुकान लगाने वाले मणिराम कहते हैं, ‘एकतरफा मुकाबला नहीं है। हो सकता है कि इस बार कांग्रेस या BJP जीत जाए। पारिवारिक फूट के कारण इनेलो-JJP हाशिए पर चली गईं। अगर इनेलो से JJP अलग नहीं होती तो 2019 में इनकी सरकार बनती। अभी प्रदेश में JJP की हालत खस्ता है, जबकि इनेलो उससे बेहतर स्थिति में है।‘

अब बात इनेलो-JJP के कोर वोटर्स की… मिठाई दुष्यंत चौटाला ही खाएंगे, धीरे-धीरे JJP से नाराजगी खत्म हो रही इसके बाद हम रीजनल पार्टीज के कोर वोटर्स से मिले। जींद जिले के उचाना खुर्द गांव में ज्यादातर लोगों ने JJP और इनेलो के खत्म होने की बात कही, लेकिन यहां मिले बोबली हलवाई का दावा है कि मिठाई तो दुष्यंत चौटाला ही खाएंगे।

वहीं, चौधरी देवीलाल के परिवार से 80 के दशक से जुड़े रामफल कहते हैं कि मेरा परिवार देवीलाल को वोट देता रहा है। पहले इनेलो को देते थे, अब JJP को। वे कहते हैं, ‘लोकसभा से विधानसभा में JJP की स्थिति सुधरेगी। धीरे-धीरे लोगों की नाराजगी भी खत्म होगी।‘ हालांकि वे ये भी मानते हैं कि अगर इन्हें खुद को बचाना है तो दोनों पार्टियों को साथ आना पड़ेगा।

सुदकैन खुर्द गांव के रहने वाले रविंद्र सिंह मलिक 1994 से इनेलो के साथ रहे। अब JJP से जुड़े हैं। इनेलो और JJP के हाशिए पर जाने के सवाल पर वे कहते हैं, ‘अभय सिंह चौटाला का हमेशा से गर्म स्वभाव रहा है। कार्यकर्ताओं को धमकाना और किसी को भी डांट देना, जबकि अजय सिंह चौटाला सबके प्रिय हैं। ऐसे ही दुष्यंत हैं।‘

रविंद्र ये भी कहते हैं, ‘JJP भी तो इनेलो से ही निकला हुआ पौधा है। तना तो एक ही है, सिर्फ शाखाएं ही अलग हैं। परिवार एक है, कभी-कभी विचार अलग हो जाते हैं।‘

सिरसा के ऐलनाबाद में मिले बुजुर्ग भरत लाल हाथ जोड़कर मोदी को वोट देने की बात करते हैं। देवीलाल से लेकर ओम प्रकाश चौटाला को वोट दे चुके भरत लाल कहते हैं कि अभय सिंह चौटाला को वोट नहीं देंगे, क्योंकि मोदी सरकार बढ़िया है। घर बैठे ही पेंशन मिल रही है।‘

अब बात पॉलिटिकल पार्टियों के दावों की… JJP: इस चुनाव में रिवाइव करेंगे, 20-25 सीटें जीतेंगे JJP के मौजूदा हालत पर हमने पार्टी के चीफ मीडिया कोऑर्डिनेटर और प्रवक्ता दीपकमल सहारण से बात की। वे इनेलो और JJP के इस हाल के लिए BJP-कांग्रेस को जिम्मेदार बताते हैं। उन्होंने देश को NDA और INDIA ब्लॉक में बांटने का आरोप लगाया।

दीपकमल कहते हैं, ‘दोनों ही पार्टियां किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं थीं, इसलिए वोटों का नुकसान हुआ। हरियाणा के इतिहास में रीजनल पार्टियों का इतना कम वोट शेयर कभी नहीं रहा। इस बार हम 20-25 सीटें जीतकर दूसरे या तीसरे नंबर की पार्टी बनकर सरकार में पहुंचने की उम्मीद कर रहे हैं।’

इनेलो बोली- हमसे दूर हुआ वोटर लौटा, 25 से ज्यादा सीटें जीतेंगे इनेलो के मीडिया कोऑर्डिनेटर राकेश सिहाग पार्टी की कमजोर हालत की वजह बताते हुए कहते हैं, ‘कुछ गद्दारों के कारण पार्टी टूट गई। एक बार डेंट पड़ने पर पार्टी को नुकसान होता ही है। हालांकि, अब वो स्थिति नहीं रही। हमारा वोटर JJP या दूसरी तरफ चला गया था, वो लौट आया है। इस बार हम 25 से ज्यादा सीटें जीतेंगे और सत्ता में वापसी करेंगे।‘

पिछले चुनावों में पार्टियों का प्रदर्शन… पिछले विधानसभा चुनाव में JJP 10 सीटें जीतकर बनी थी किंगमेकर 2019 के विधानसभा चुनाव में JJP का वोट शेयर 14.80% था। वो 10 सीटें जीतकर किंगमेकर की भूमिका में थी। वहीं, इनेलो सिर्फ एक ऐलनाबाद सीट ही जीत सकी थी। यहां से पार्टी के इकलौते विधायक अभय सिंह चौटाला हैं।

2014 के चुनाव में इनेलो के 19 विधायक चुने गए थे। पार्टी ने 24% से ज्यादा वोट शेयर हासिल किया था। BJP के बाद इनेलो दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी। वहीं, 2009 के चुनाव में इनेलो को 25.8% वोट के साथ 31 सीटें मिली थीं।

एक्सपर्ट बोले- रीजनल पार्टियों की वापसी आसान नहीं हरियाणा में रीजनल पार्टियों के हाशिए पर जाने की वजह समझने के लिए हमने पॉलिटिकल एनालिस्ट और सीनियर जर्नलिस्ट से भी बात की। सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (CSDS) के डायरेक्टर और पॉलिटिकल एनालिस्ट संजय कुमार कहते हैं, ‘हरियाणा में कांग्रेस और BJP के बीच सीधी लड़ाई है। रीजनल पार्टियां किंग बनने से बहुत दूर हैं। किंग मेकर की भूमिका में भी नहीं हैं।‘

‘पिछले 10 साल में BJP का जिस तरह से विस्तार हुआ है, हरियाणा चुनाव में उसका असर दिखाई देता है। 2014 के विधानसभा चुनाव से पहले हरियाणा में BJP डबल डिजिट में सीटें नहीं जीतती थी। 2014 में अकेले सरकार बनाई। 2019 के चुनाव में उन्होंने गठबंधन के साथ सरकार बनाई। कांग्रेस की स्थिति तो हरियाणा में हमेशा से मजबूत रही है।‘

संजय कहते हैं, ‘2014 और 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे क्षेत्रीय चुनाव में भी हावी रहे। रीजनल पार्टियां राष्ट्रीय मुद्दों के मुकाबले लोकल मुद्दों को ज्यादा बखूबी उठा पाती हैं। इसी वजह से रीजनल पार्टियां हाशिए पर जाती दिखाई पड़ती हैं।‘

महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस डिपार्टमेंट के हेड और प्रोफेसर राजेंद्र शर्मा कहते हैं, ‘BJP ने पिछले 10-15 साल में रीजनल पार्टियों के साथ गठबंधन किया। कांग्रेस को हराने के लिए न तो रीजनल पार्टियां इतनी मजबूत थीं और न BJP अकेले इतनी मजबूत थी। उस वक्त की जरूरत के मुताबिक ये साथ आए।’

सीनियर जर्नलिस्ट बलवंत तक्षक कहते हैं, ‘2019 में अगर दुष्यंत चौटाला BJP सरकार को समर्थन नहीं देते, तो कुछ वक्त बाद उनके विधायक टूट जाते। 2009 में हुड्डा ने सरकार बनाई, तब उन्हें बहुमत के लिए 5 विधायकों की जरूरत थी। भजनलाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई की पार्टी ने 6 सीटें जीती थीं और उनके 5 विधायक हुड्डा साहब से जा मिले थे।’

‘दुष्यंत चौटाला को डर था कि अगर BJP के साथ नहीं गए तो हमारे साथ भी यही खेल हो सकता है, जो कुलदीप बिश्नोई के साथ हुआ था। अपना वजूद बचाने की जद्दोजहजद कर रहीं हरियाणा की रीजनल पार्टियां इनेलो और JJP ने दलित वोटों के लिए BSP और ASP से समझौता कर लिया है। इनकी कोशिश है कि जाट और दलित वोटर मिल जाएं तो चुनाव में उन्हें कुछ फायदा मिल सकता है।‘

सीनियर जर्नलिस्ट धर्मेंद्र कंवारी के मुताबिक, ‘2014 में पूरे देश में ही एक नए तरह की राजनीति का उदय हुआ। जिन-जिन राज्यों में BJP की सरकारें नहीं थीं, PM मोदी की वजह से वहां BJP की सरकारें बनीं। BJP की सरकार आने के बाद हरियाणा में रीजनल पार्टियां कमजोर होती गईं। इनेलो और JJP का मुश्किल से 10 सीटों पर ही प्रभाव है। JJP का जनाधार आज के दिन लगभग जीरो है।‘

इलेक्शन एनालिस्ट रमणीक सिंह मान कहते हैं कि किसी भी पार्टी को चलाने के लिए बड़ा फंड चाहिए। काडर मैनेज करना होता है। तमाम तरह के खर्च उठाने होते हैं।

वे कहते हैं, ‘सत्ता से बाहर रहकर पार्टी चलाना इतना आसान नहीं है। JJP ने सत्ता का फायदा उठाया, इसलिए हो सकता है कि वो आज इस स्थिति में हो। अगले 5-10 साल विपक्ष में रहकर सर्वाइव कर जाए। इनेलो लंबे समय से सत्ता से बाहर है। कुनबा बिखरने लगता है, तब पार्टियां सर्वाइव नहीं कर पातीं।‘

कभी हरियाणा की सबसे मजबूत रीजनल पार्टी रही इनेलो और उससे निकली JJP आज अपने वजूद को बचाने की लड़ाई लड़ रही हैं। अपना जनाधार बढ़ाने के लिए उन्होंने बहुजन समाज पार्टी और आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के साथ अलग-अलग समझौता भी किया है।

हालांकि, एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर दोनों पार्टियों को आने वाले दिनों में अपनी स्थिति सुधारनी है तो पार्टी और परिवार को एकजुट होने की जरूरत है।

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