भास्कर एक्सप्लेनर- PM मोदी क्यों चाहते हैं एकसाथ चुनाव:1952 से 1967 तक हुए ‘वन इलेक्शन’; इसके फायदे और खामियां समझिए
वन नेशन वन इलेक्शन’ सिर्फ चर्चा का विषय नहीं, बल्कि भारत की जरूरत है। हर कुछ महीने में कहीं न कहीं चुनाव हो रहे हैं। इससे विकास कार्यों पर प्रभाव पड़ता है।
नवंबर 2020 में PM नरेंद्र मोदी ने पीठासीन अधिकारी सम्मेलन को संबोधित करते हुए ये बात कही थी। अब करीब 4 साल बाद 18 सितंबर 2024 को मोदी कैबिनेट ने वन नेशन वन इलेक्शन के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। इसका बिल शीतकालीन सत्र यानी नवंबर-दिसंबर में संसद में पेश किया जाएगा।
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि एक साथ चुनाव दो फेज में होंगे- पहले फेज में लोकसभा और सभी विधानसभा चुनाव एक साथ होंगे और दूसरे फेज में सभी निकाय चुनाव। अगर कोई विधानसभा समय से पहले भंग हो जाती है, तो सिर्फ बचे हुए कार्यकाल के लिए चुनाव कराए जाएं, जिससे फिर सभी चुनाव एक साथ हो सकें।
वन नेशन वन इलेक्शन क्या है? PM मोदी इसे क्यों लागू करना चाहते हैं? सरकार ने अंदरखाने क्या-क्या तैयारी कर ली है? भास्कर एक्सप्लेनर में ऐसे 8 जरूरी सवालों के जवाब जानेंगे…
सवाल 1: ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ क्या है?
जवाबः भारत में फिलहाल राज्यों के विधानसभा और देश के लोकसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं। वन नेशन वन इलेक्शन का मतलब है कि पूरे देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव हों। यानी मतदाता लोकसभा और राज्य के विधानसभाओं के सदस्यों को चुनने के लिए एक ही दिन, एक ही समय पर या चरणबद्ध तरीके से अपना वोट डालेंगे।
आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही होते थे, लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गईं। उसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई। इस वजह से एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई।
सवाल 2: सरकार ने वन नेशन वन इलेक्शन लागू करने की दिशा में अब तक क्या-क्या काम किया है?
जवाबः मई 2014 में जब केंद्र में मोदी सरकार आई, तो कुछ समय बाद ही एक देश और एक चुनाव को लेकर बहस शुरू हो गई।
दिसंबर 2015 में लॉ कमीशन ने वन नेशन-वन इलेक्शन पर एक रिपोर्ट पेश की थी। इसमें बताया था कि अगर देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभा के चुनाव कराए जाते हैं, तो इससे करोड़ों रुपए बचाए जा सकते हैं। इसके साथ ही बार-बार चुनाव आचार संहिता न लगने की वजह से डेवलपमेंट वर्क पर भी असर नहीं पड़ेगा। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए 2015 में सिफारिश की गई थी कि देश में एक साथ चुनाव कराए जाने चाहिए।
PM मोदी ने जून 2019 में पहली बार औपचारिक तौर पर सभी पार्टियों के साथ इस मसले पर विचार-विमर्श के लिए बैठक बुलाई थी। तब केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ BJP नेता रवि शंकर प्रसाद ने कहा था कि देश में कमोबेश हर महीने चुनाव होते हैं, उसमें खर्चा होता है। आचार संहिता लगने के कारण कई प्रशासनिक काम भी रुक जाते हैं। हालांकि कई पार्टियों ने विरोध दर्ज कराया था।
2020 में PM मोदी ने एक सम्मेलन में वन नेशन वन इलेक्शन को भारत की जरूरत बताया। 1 सितंबर 2023 को सरकार ने इस मसले पर एक कमेटी बनाने का फैसला किया। जिसके अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद बनाए गए। इस कमेटी ने इस मसले पर सभी स्टेक होल्डर्स से राय लेकर रिपोर्ट तैयार की।
15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से दी गई स्पीच में भी प्रधानमंत्री ने वन नेशन-वन इलेक्शन की वकालत की थी। उन्होंने कहा था कि बार-बार चुनाव देश की प्रगति में बाधा पैदा कर रहे हैं।
वन नेशन वन इलेक्शन पर विचार के लिए बनाई गई पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली कमेटी ने 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी। रिपोर्ट 18 हजार 626 पन्नों की है।
सवाल-3: वन नेशन वन इलेक्शन के पैनल ने अपनी रिपोर्ट में क्या सुझाव दिए हैं
जवाबः रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाले पैनल ने 5 प्रमुख सुझाव दिए हैं…
- सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल अगले लोकसभा चुनाव यानी 2029 तक बढ़ाया जाए।
- हंग असेंबली (किसी को बहुमत नहीं), नो कॉन्फिडेंस मोशन होने पर बाकी 5 साल के कार्यकाल के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं।
- पहले फेज में लोकसभा-विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं, उसके बाद दूसरे फेज में 100 दिनों के भीतर लोकल बॉडी के इलेक्शन कराए जा सकते हैं।
- चुनाव आयोग लोकसभा, विधानसभा, स्थानीय निकाय चुनावों के लिए राज्य चुनाव अधिकारियों के परामर्श से सिंगल वोटर लिस्ट और वोटर आई कार्ड तैयार करेगा।
- कोविंद पैनल ने एक साथ चुनाव कराने के लिए उपकरणों, जनशक्ति और सुरक्षा बलों की एडवांस प्लानिंग की सिफारिश की है।
सवाल 4: क्या देश में वन नेशन वन इलेक्शन लागू करना संभव है?
जवाबः CSDS के प्रोफेसर संजय कुमार के मुताबिक वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर दो सिनेरियो हैं- संसद कानून बना सकती है या इसके लिए दो-तिहाई राज्यों की रजामंदी की जरूरत होगी।
अगर बाकी राज्यों से सहमति लेने की जरूरत हुई तो ज्यादातर नॉन BJP सरकारें इसका विरोध करेंगी। अगर सिर्फ संसद से पारित कराकर कानून बनाना संभव हुआ तो भी कई मुश्किलें होंगी। जैसे- एक साथ चुनाव कब कराया जाए? जिन राज्यों में अभी चुनाव हुए उनका क्या होगा? क्या इन सरकारों को बर्खास्त कर दिया जाएगा?
साफ है कि कानूनी तौर पर कई अड़चनें आने वाली हैं। मेरा मानना है कि कानूनी आधार पर इस समस्या का हल कर पाना संभव नहीं है। इसके लिए दूसरे राज्यों की सहमति बहुत जरूरी है। हालांकि मतभेद इतना ज्यादा है कि ये मुमकिन नहीं लगता।
पॉलिटिकल एक्सपर्ट रशीद किदवई के मुताबिक अभी जिन राज्यों में हाल में सरकार चुनी गई है, वो इसका विरोध करेंगे। एक बात साफ है कि अगर सरकार ऐसा करेगी तो इस मामले का सुप्रीम कोर्ट में जाना तय है।
सवाल 5: वन नेशन वन इलेक्शन लागू करना मुश्किल, इसके बावजूद सरकार क्यों लाना चाहती है?
जवाबः संजय कुमार का कहना है कि सरकार ने निश्चित तौर पर ये कैलकुलेशन किया होगा कि वन नेशन वन इलेक्शन को लागू करना कितना मुश्किल है। जैसे ही BJP संसद में इसको लेकर बिल लाएगी, तमाम विपक्षी दल इसका विरोध करेंगे।
रशीद किदवई का कहना है कि
PM मोदी जो काम करते हैं, उसकी मंशा ये होती है कि ज्यादा से ज्यादा प्रचार हो। इसे ऐसे समझें कि संविधान के आर्टिकल 370 के खत्म होने से भले ही कश्मीर में ज्यादा कुछ नहीं बदला हो, लेकिन देश में PM मोदी ने अपनी धाक जमा ली है। उन्होंने जनता में ये मैसेज दिया कि केंद्र सरकार ने काफी बड़ा काम कर दिखाया है। देश में बड़ी आबादी मध्यमवर्ग की है, उनको खर्चा बचाने की बात कहने से सरकार की लोकप्रियता बढ़ जाएगी।
सवाल-6: वन नेशन वन इलेक्शन के पीछे बीजेपी की राजनीतिक मंशा क्या हो सकती है?
जवाबः पब्लिक-पॉलिसी से जुड़े मुद्दों के थिंक टैंक IDFC इंस्टीट्यूट की एक स्टडी में कुछ रोचक बातें सामने आईं। मसलन…
– अगर लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ होते हैं, तो 77% वोटर्स दोनों जगह एक ही पार्टी को वोट करते हैं।
– अगर लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में 6 महीने का अंतर होता है, तो एक ही पार्टी को वोट देने की संभावना 77% से घटकर 61% रह जाती है।
– दोनों चुनाव में 6 महीने से ज्यादा अंतर होने पर एक ही पार्टी को वोट करने की संभावना 61% से भी कम हो जाती है।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि केंद्र के लिए PM मोदी का चेहरा सबसे मजबूत है। अगर लोकसभा के साथ विधानसभा के चुनाव भी होते हैं तो इसका फायदा BJP को मिल सकता है। खासकर UP, MP, राजस्थान जैसे काऊ बेल्ट वाले राज्यों में। हालांकि लॉन्ग टर्म में इस पैटर्न का फायदा विपक्षी दलों को भी हो सकता है, जिनके पास नेशनल अपील वाला बड़ा नेता होगा।
सवाल 7: वन नेशन वन इलेक्शन के समर्थन में क्या-क्या कहा जा रहा है?
जवाबः हर साल 5-6 राज्यों में चुनाव पड़ जाते हैं। वन नेशन वन इलेक्शन के समर्थकों का कहना है कि इससे विकास कार्यों में बाधा पड़ती है। वो ओडिशा का उदाहरण देते हैं। ओडिशा में 2004 के बाद से चारों विधानसभा चुनाव, लोकसभा चुनाव के साथ हुए और उसमें नतीजे भी अलग-अलग रहे। वहां आचार संहिता बहुत कम देर के लिए लागू होती है, जिसकी वजह से सरकार के कामकाज में दूसरे राज्यों के मुकाबले कम खलल पड़ता है।
पूरे देश की विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव एक साथ होते हैं तो इससे चुनाव पर होने वाले खर्च में कमी आएगी। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले अगस्त 2018 में लॉ कमीशन की एक रिपोर्ट आई थी। इसमें कहा गया था कि अगर 2019 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ होते हैं, तो उससे 4,500 करोड़ रुपए का खर्च बढ़ेगा। ये खर्चा इसलिए क्योंकि EVM ज्यादा लगानी पड़ेंगी। इसमें ये भी कहा गया था कि साथ चुनाव कराने का सिलसिला आगे बढ़ता है, तो 2024 में 1,751 करोड़ रुपए का खर्च बढ़ता। यानी, धीरे-धीरे ये एक्स्ट्रा खर्च भी कम हो जाता।
सवाल 8: वन नेशन वन इलेक्शन के विरोध में क्या तर्क दिए जा रहे हैं?
जवाबः राष्ट्रीय स्तर पर देश और राज्य के मुद्दे अलग-अलग होते हैं। एक साथ चुनाव हुए तो वोटर्स के फैसले पर असर पड़ने की संभावना है। चुनाव 5 साल में एक बार होंगे तो जनता के प्रति सरकार की जवाबदेही कम हो जाएगी। अभी की स्थिति में लोकसभा चुनाव जीतने वाली पार्टियों को डर होता है कि अच्छे से काम नहीं करेंगे तो विधानसभा में दिक्कत होगी।
एक साथ चुनाव कराने में तीसरी दिक्कत ये है कि अगर लोकसभा 5 साल से पहले ही भंग कर दी गई तो क्या होगा? क्योंकि अभी तक लोकसभा 6 बार 5 साल से पहले ही भंग कर दी गई, जबकि एक बार इसका कार्यकाल 10 महीने के लिए बढ़ा था। ऐसी स्थिति में तो फिर अलग-अलग चुनाव होने लगेंगे।
सवाल 9: देश में वन नेशन वन इलेक्शन लागू करने की प्रक्रिया क्या होगी?
जवाबः सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील विराग गुप्ता के मुताबिक विधि आयोग ने इस बारे में संशोधनों के विवरण के साथ अप्रैल, 2018 में पब्लिक नोटिस जारी किया था। विधि आयोग के अनुसार वन नेशन वन इलेक्शन के प्रस्ताव से संविधान के अनुच्छेद 328 पर भी प्रभाव पड़ेगा, जिसके लिए अधिकतम राज्यों का अनुमोदन लेना पड़ सकता है।
संविधान के अनुच्छेद 368(2) के अनुसार ऐसे संशोधन के लिए न्यूनतम 50% राज्यों के अनुमोदन की जरूरत होती है, लेकिन ‘एक देश, एक चुनाव’ के तहत हर राज्य की विधानसभा के अधिकार और कार्यक्षेत्र प्रभावित हो सकते हैं।
इसलिए इस मामले में सभी राज्यों की विधानसभाओं से अनुमोदन लेने की जरूरत पड़ सकती है। इसके बाद जनप्रतिनिधित्व कानून समेत कई दूसरे कानून में संशोधन करने होंगे।
30 अगस्त 2018 को न्यायमूर्ति बीएस चौहान की अध्यक्षता वाले विधि आयोग ने भी कहा कि संविधान के मौजूदा ढांचे के तहत देश में वन नेशन वन इलेक्शन नहीं करा सकते हैं। इसके लिए संविधान के जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में बदलाव की जरूरत होगी। इसके अलावा लोकसभा व विधानसभाओं के संचालन के लिए बने नियमों में भी संशोधन की जरूरत होगी।