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रणजीत चौटाला चंडीगढ़ में ताजपोशी की तैयारी कर रहे थे:देवीलाल ने दिल्ली में ओमप्रकाश चौटाला को CM पद की शपथ दिलवा दी

जो CM बनने से चूके

रणजीत चौटाला चंडीगढ़ में ताजपोशी की तैयारी कर रहे थे:देवीलाल ने दिल्ली में ओमप्रकाश चौटाला को CM पद की शपथ दिलवा दी

41 मिनट पहलेलेखक: चेतन सिंह

साल 1989, लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार हुई। पांच साल पहले 414 सीटें जीतने वाली कांग्रेस महज 197 सीटों पर सिमट गई। 143 सीट जीतने वाले जनता दल के नेतृत्व में नेशनल फ्रंट की सरकार बनी। राजीव गांधी से बगावत करने वाले वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने।

इस पूरे घटनाक्रम में हरियाणा के दिग्गज नेता और मुख्यमंत्री चौधरी देवीलाल की बड़ी भूमिका थी, जिन्होंने प्रधानमंत्री पद का ऑफर ठुकरा दिया और उप प्रधानमंत्री बन गए। अब देवीलाल के सामने दुविधा थी कि हरियाणा की कमान किसे सौंपी जाए।

तब हरियाणा सरकार में देवीलाल के छोटे बेटे रणजीत चौटाला का अच्छा दखल था, जबकि उनके बड़े बेटे ओमप्रकाश चौटाला राज्यसभा सांसद थे। देवीलाल ने उन्हें राज्य की राजनीति से दूर रखा था। कहा जाता है कि देवीलाल, रणजीत को हरियाणा की कमान सौंपने का मन बना चुके थे।

इधर, रणजीत को डर था कि कहीं ओमप्रकाश चौटाला बड़ा बेटा होने के नाते सत्ता हासिल न कर लें। 1 दिसंबर को उन्होंने दिल्ली के एक होटल में अपने समर्थकों के साथ बैठक की। बैठक का मकसद साफ था, देवीलाल और ओमप्रकाश को मैसेज देना कि बहुमत उनके साथ है। उसी दिन रणजीत चंडीगढ़ पहुंचे और मुख्यमंत्री बनने की तैयारियां भी शुरू कर दीं।

देवीलाल को यह बात इतनी चुभी कि उन्होंने उसी रात बड़े बेटे ओमप्रकाश को सत्ता सौंपने का मन बना लिया। उन्होंने दिल्ली में विधायक दल की बैठक बुलाई और मुख्यमंत्री के लिए ओमप्रकाश के नाम की घोषणा कर दी। उसी दिन, यानी 2 दिसंबर को दिल्ली के हरियाणा भवन में ओमप्रकाश को CM पद की शपथ भी दिलवा दी गई।

इस तरह रणजीत CM बनने से चूक गए। इसके बाद दो और मौके आए जब रणजीत CM की कुर्सी के करीब पहुंचे, लेकिन तब भी मुख्यमंत्री ओमप्रकाश ही बने।

 की स्पेशल सीरीज ‘जो CM बनने से चूके’ में कहानी रणजीत चौटाला की…

साल 2019, मनोहर लाल खट्टर सरकार में कैबिनेट मंत्री पद की शपथ लेते हुए रणजीत चौटाला।

रणजीत चौटाला का जन्म 18 मई, 1945 को हुआ था। पिता देवीलाल और ताऊ साहबराम सिहाग राजनीति में सक्रिय थे। घर के राजनीतिक माहौल में ही रणजीत की परवरिश हुई। जब वे पढ़ाई कर रहे थे तब अलग राज्य का आंदोलन चरम पर था। रणजीत भी उससे जुड़ गए। ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने कुछ साल बिजनेस में भी हाथ आजमाए, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। इसके बाद वे पिता के साथ राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने लगे।

बड़े भाई ओमप्रकाश चौटाला भी 60 के दशक से ही राजनीति में सक्रिय थे। 1970 के उपचुनाव में विधायक भी बन चुके थे, लेकिन देवीलाल उनसे बहुत खुश नहीं थे। इसका कारण चौटाला का अक्खड़ स्वभाव था।

1978 की बात है। देवीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री थे। ओमप्रकाश चौटाला साउथ-ईस्ट एशिया के एक सम्मेलन में बैंकॉक गए। 22 अक्टूबर को वे भारत लौटे। दिल्ली एयरपोर्ट पर कस्टम विभाग ने जब उनके बैग की तलाशी ली, तो करीब 4 दर्जन घड़ियां और 2 दर्जन महंगे पेन बरामद हुए।

खबर फैल गई कि देवीलाल का बेटा तस्करी में पकड़ा गया है। देवीलाल उस समय चंडीगढ़ PGI में अपना इलाज करवा रहे थे। जब देवीलाल को इसकी जानकारी हुई, तो उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई और साफ लहजे में कह दिया, ‘ओमप्रकाश के लिए मेरे घर के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो चुके हैं।’

हालांकि, पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे संपत सिंह बताते हैं, ‘CM का बेटा होने के नाते ओमप्रकाश को विदेश दौरे पर गिफ्ट में घड़ियां मिली थीं। जांच हुई, तो चौटाला निर्दोष पाए गए। इसके बाद देवीलाल ने भी बेटे को माफ कर दिया।’

रणजीत विधायक बनते ही मंत्री बने, यहीं से चौटाला परिवार में उत्तराधिकार की जंग शुरू हो गई साल 1985, प्रधानमंत्री राजीव गांधी और अकाली दल के अध्यक्ष संत हरचंद सिंह लोगोंवाल के बीच एक समझौता हुआ। इसमें चंडीगढ़ और रावी-व्यास नदी के जल बंटवारे से जुड़ा मामला शामिल था। समझौते को लेकर हरियाणा में काफी आक्रोश था। देवीलाल ने लोकदल के 18 विधायकों के साथ विधानसभा से इस्तीफा देकर ‘न्याय युद्ध’ छेड़ दिया। रणजीत भी पिता के साथ जी-जान से जुट गए। रणजीत बताते हैं कि उस समय रोहतक में लोकदल का हेड ऑफिस बनाया गया। रणजीत सिंह को हेड ऑफिस चलाने की जिम्मेदारी दी गई।

1987 में चुनाव हुए तो लोकदल को 60 सीटें मिलीं। रणजीत ने रोड़ी सीट से चुनाव जीता और देवीलाल ने उन्हें अपनी सरकार में कृषि मंत्री बनाया। इसके बाद से ही ओमप्रकाश और रणजीत में उत्तराधिकार की लड़ाई शुरू हो गई। देवीलाल और ओमप्रकाश में भी मतभेद थे, लेकिन बड़ा बेटा होने के कारण वे ओमप्रकाश को पूरी तरह इग्नोर नहीं कर पाए। देवीलाल ने ओमप्रकाश को राज्यसभा भेज दिया।

चौधरी देवीलाल के पीछे रणजीत चौटाला (सबसे बाएं) अपने भाई ओमप्रकाश चौटाला और प्रताप चौटाला के साथ।

ओमप्रकाश की वजह से हमारी 6 सीटें कम हो गई थीं- रणजीत चौटाला रणजीत चौटाला बताते हैं- ‘1982 के विधानसभा चुनाव में लोकदल को 31 सीटें मिलीं। सहयोगी पार्टी BJP ने 6 सीटें जीतीं। देवीलाल ने निर्दलीय विधायकों को मिलाकर समर्थन जुटा लिया था, लेकिन राज्यपाल ने भजनलाल को शपथ दिला दी। उस चुनाव में हमारे कई उम्मीदवार हार गए थे।

इनमें से 6 उम्मीदवारों की हार के पीछे ओमप्रकाश चौटाला का हाथ था। उन्होंने उन उम्मीदवारों को इसलिए हरवाया, क्योंकि वे चौधरी चरण सिंह के खेमे के थे। देवीलाल बेहद नाराज थे। उन्होंने ओमप्रकाश को साफ शब्दों में कह दिया था कि तुम बाहर बैठो और मुझे राजनीति करने दो।’

देवीलाल ने कहा- ओम मेरी जगह मुख्यमंत्री पद की शपथ लेगा दो साल बाद यानी, 1989 में आम चुनाव के बाद जनता दल केंद्र में सरकार बनाने की स्थिति में आया। प्रो. संपत सिंह बताते हैं- ‘दिल्ली के हरियाणा भवन में देवीलाल काफी परेशान दिख रहे थे। देर रात तक उन्हें नींद नहीं आ रही थी।

दरअसल, वे दिल्ली की राजनीति में जाना चाहते थे, लेकिन ओमप्रकाश और रणजीत की खटपट के कारण उन्हें चिंता थी कि कहीं पार्टी और परिवार बिखर तो नहीं जाएगा। इसी बीच मैंने उनका दरवाजा खटखटाया। उन्होंने कहा- आओ संपत, नींद नहीं आ रही।

मैंने पूछा कि क्या हुआ?

इस पर देवीलाल ने कहा कि मैं दोराहे पर खड़ा हूं। उप प्रधानमंत्री बनूं या मुख्यमंत्री बना रहूं? समझ नहीं आ रहा। मैंने कहा- इसमें सोचने वाली क्या बात है। आपको इतनी बड़ी जिम्मेदारी मिल रही है, आप उप प्रधानमंत्री बनिए। तब देवीलाल ने पूछा कि यहां किसे कमान सौपूं।

संपत सिंह ने कहा- आप जो फैसला करेंगे, वो सब मानेंगे। तब देवीलाल ने कहा, ओम कैसा रहेगा? मैंने कहा ठीक रहेगा जी। इसके बाद देवीलाल ने घंटी बजाई और PA को बुलाकर कहा- वीपी सिंह को फोन लगाओ।

तब रात के करीब 11 बज रहे थे। देवीलाल ने वीपी सिंह से कहा- मैं भी आपके साथ डिप्टी प्राइम मिनिस्टर की शपथ लूंगा और फोन काट दिया।’ अगले दिन दिल्ली में लोकदल के विधायकों की बैठक हुई। देवीलाल ने कहा कि ओम मेरी जगह लेगा और हरियाणा का मुख्यमंत्री बनेगा।’

2 दिसंबर को ओमप्रकाश चौटाला हरियाणा के मुख्यमंत्री बन गए।

2 दिसंबर 1989, हरियाणा के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते हुए ओमप्रकाश चौटाला। (बाएं) सोर्स : टाइम्स कंटेंट

‘पॉलिटिक्स ऑफ चौधर’ के लेखक सतीश त्यागी कहते हैं कि ओमप्रकाश चौटाला की संगठनात्मक क्षमता और सियासी समझ अच्छी थी। जबकि रणजीत सिंह देवीलाल के राजनीतिक मामले देखते थे। उस वक्त तक दोनों भाई देवीलाल के हाथ के नीचे ही राजनीति कर रहे थे, लेकिन जब वे डिप्टी PM बने तो देवीलाल ने हरियाणा के लिए ओमप्रकाश को वरीयता दी।

वरिष्ठ पत्रकार हेमंत अत्रि कहते हैं, ‘साल 2001 में ओमप्रकाश चौटाला के भाई प्रताप सिंह चौटाला की प्रेस कॉन्फ्रेंस में मैंने उनसे पूछा कि देवीलाल के वारिस तो ओमप्रकाश चौटाला हुए। उनके वारिस कौन होंगे। इस पर प्रताप ने कहा कि मैं तो आपको समझदार मानता था। चौटाला परिवार में वारिस वही होता है, जो पिता को अपनी हनक दिखा सके।’ यानी ओमप्रकाश पिता देवीलाल को अपनी हनक दिखाकर CM की कुर्सी तक पहुंच गए।

देवीलाल को रणजीत के इरादों के बारे में भनक लग गई थी सीनियर जर्नलिस्ट सतीश त्यागी बातचीत में बताते हैं- ‘रणजीत चौटाला को अधिकतर विधायकों का समर्थन था। केंद्र में वीपी सिंह के साथ भी उनके समीकरण अच्छे थे, लेकिन सम्राट होटल में विधायकों और मंत्रियों के साथ हुई मीटिंग ने मामला कुछ बिगाड़ दिया।

देवीलाल सीधे सरल आदमी थे। वहीं, रणजीत बड़े जटिल और कुटिल आदमी रहे हैं। देवीलाल ऐसे आदमियों से बचते थे। देवीलाल के पास ऐसी सूचनाएं आई होंगी कि रणजीत CM बनने के लिए इधर-उधर नेताओं से मिल रहे हैं, जो उनको पसंद नहीं आईं। ओमप्रकाश को मुख्यमंत्री बनाने का यह कारण भी रहा है।’

ओमप्रकाश चौटाला के छोटे बेटे अभय चौटाला ने 2024 के लोकसभा चुनाव में भी इस घटना का जिक्र किया था। उन्होंने कहा था कि रणजीत चौटाला ने 1989 में दिल्ली के सम्राट होटल में कुछ विधायक ले जाकर अपने पिता देवीलाल की सरकार गिराने का प्रयास किया था।

पिता देवीलाल की प्रतिमा पर फूल चढ़ाते रणजीत चौटाला।

भास्कर से बातचीत में रणजीत कहते हैं-

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ओमप्रकाश चौटाला बड़े थे। अगर छोटा बेटा कुछ प्रयास करे तो उसे साजिश कहा जाएगा और बड़ा कुछ भी करे, समाज उसे उसके अधिकार के रूप में ही देखता है।

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रणजीत को मुख्यमंत्री बनने के दो और मौके मिले, लेकिन दोनों ही बार चूक गए CM बनने के समय ओमप्रकाश राज्यसभा सदस्य थे। उन्हें राज्यसभा से इस्तीफा देकर 6 महीने में विधायक बनना था। उन्होंने महम सीट से 1990 में उपचुनाव लड़ा। उनके सामने आनंद सिंह डांगी निर्दलीय चुनाव लड़ रहे थे।

वरिष्ठ पत्रकार धर्मेंद्र कंवारी बताते हैं, ‘रणजीत तब मंत्री थे। वे चौटाला को हटाकर खुद मुख्यमंत्री बनना चाहते थे। डांगी रणजीत सिंह खेमे के आदमी थे, इसलिए उन्हें चुनाव लड़ाया गया।’

उपचुनाव में भयंकर हिंसा हुई। देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर की मीडिया में महम कांड छाया हुआ था। केंद्र सरकार के दबाव में ओमप्रकाश चौटाला को इस्तीफा देना पड़ा। मुख्यमंत्री की कुर्सी पर फिर से रणजीत चौटाला की नजर थी। देवीलाल और ओमप्रकाश चौटाला ये बात जानते थे कि अगर रणजीत को मुख्यमंत्री बनाते हैं, तो फिर उन्हें हटाना मुश्किल होगा। साथ ही वे सरकार भी अपनी मर्जी से चलाएंगे।

इसलिए देवीलाल ने बनारसी दास गुप्ता को CM बना दिया। हरियाणा की राजनीति में बनारसी दास को कठपुतली मुख्यमंत्री कहा गया। 51 दिन बाद बनारसी दास को हटाकर ओमप्रकाश फिर से मुख्यमंत्री बन गए। हालांकि, वीपी सिंह के दबाव के बाद 5 दिन के भीतर ही ओमप्रकाश को फिर से इस्तीफा देना पड़ा।

इसके बाद भी देवीलाल ने CM की कुर्सी रणजीत को नहीं सौंपी। हुकम सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया। वे देवीलाल के पुराने और सबसे भरोसेमंद साथी थे। हरियाणा में जब आया राम, गया राम पॉपुलर था, और नेता कपड़ों की तरह दल बदल कर रहे थे, तब भी हुकम सिंह ने देवीलाल का साथ नहीं छोड़ा था।

करीब 248 दिन CM रहने के बाद हुकम सिंह की जगह ओमप्रकाश चौटाला फिर से CM बन गए। इस बार लोकदल के बहुत से MLA विरोध में उतर गए। 16 दिन की उठा-पटक के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लग गया।

फरवरी 2020, प्रधानमंत्री मोदी के साथ रणजीत चौटाला।

जब चुनाव में दोनों भाई आमने-सामने हुए, ओमप्रकाश ने बाजी मारी देवीलाल की राजनीतिक विरासत ओमप्रकाश को मिलने के बाद रणजीत ने लोकदल से किनारा करना शुरू कर दिया। 1994 में उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया। रणजीत चौटाला के पार्टी छोड़ने से लोगों में ठीक मैसेज नहीं गया। राजनीतिक तल्खियां और बढ़ गईं जब दोनों भाइयों ने एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ा।

साल 2000 के विधानसभा चुनाव में रोड़ी सीट पर दोनों आमने-सामने थे। रणजीत ने कांग्रेस तो ओमप्रकाश ने अपने पिता की नई बनाई पार्टी, इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) से चुनाव लड़ा। रणजीत करीब 23 हजार वोट से चुनाव हार गए।

साल 2005 में कांग्रेस ने हरियाणा में वापसी की और पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई। भूपेंद्र सिंह हुड्डा मुख्यमंत्री बने। उन्होंने रणजीत चौटाला को प्लानिंग कमीशन का अध्यक्ष बना दिया।

2009 विधानसभा चुनाव में रणजीत रानियां विधानसभा सीट से चुनाव में उतरे। इस बार भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा। देवीलाल की पार्टी के ही एक उम्मीदवार कृष्ण कांबोज ने उन्हें हरा दिया। इसके बाद हार का सिलसिला चलता चला गया। 2011 में आदमपुर उपचुनाव में चौधरी भजनलाल ने उन्हें हरा दिया और 2014 में रानियां सीट से इनेलो के रामचंद्र कंबोज ने रणजीत को पटखनी दी।

कांग्रेस छोड़कर BJP में मंत्री बने, BJP ने टिकट नहीं दिया तो निर्दलीय उतरे साल 2019 रणजीत के लिए ठीक-ठाक रहा। इस बार कांग्रेस ने उनका टिकट काट दिया, तो वे रानियां से निर्दलीय मैदान में उतर गए। इस बार उन्हें जीत मिल गई। राज्य में BJP की सरकार बनी और रणजीत उसमें बतौर कैबिनेट मंत्री शामिल हो गए।

मार्च, 2024 में रणजीत BJP में शामिल हो गए। पार्टी ने उन्हें हिसार से लोकसभा चुनाव लड़वाया, लेकिन वे चुनाव हार गए। इसके बाद उन्होंने विधानसभा के लिए दावेदारी की, लेकिन BJP ने उनका टिकट काट दिया। अब रणजीत निर्दलीय ही मैदान में हैं। इनेलो से उनके सामने भतीजे अभय चौटाला के बेटे अर्जुन चुनाव मैदान में हैं।

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