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संविधान की प्रस्तावना से समाजवादी-धर्मनिरपेक्ष शब्द हटाने की मांग:सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- क्या तारीख बदले बिना संशोधन कर सकते हैं

सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया है कि क्या संविधान को अपनाने की तारीख यानी 26 नवंबर 1949 को बरकरार रखते हुए इसकी प्रस्तावना में संशोधन किया जा सकता है। दरअसल, पूर्व राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी और वकील विष्णु शंकर जैन ने संविधान की प्रस्तावना से समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्द हटाने की मांग की है।

स्वामी ने अपनी याचिका में दलील दी है कि प्रस्तावना को संशोधित या निरस्त नहीं किया जा सकता है। जिस पर शुक्रवार 9 फरवरी को सुनवाई हुई। इसी दौरान जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने यह सवाल पूछा।

कोर्ट ने कहा- एकेडमिक पर्पज के लिए बदलाव कर सकते हैं
सुनवाई के दौरान जस्टिस दत्ता ने कहा कि शैक्षणिक उद्देश्य के लिए संविधाान की प्रस्तावना जिसमें तारीख का उल्लेख किया गया हो, क्या उसे अपनाने की तारीख में बदलाव किए बिना संशोधन किया जा सकता है। हालांकि संशोधन करने में कोई समस्या नहीं है।

स्वामी ने कहा- इस मामले में सवाल यही है। जस्टिस दत्ता ने आगे कहा- शायद यह एकमात्र प्रस्तावना है जो मैंने देखी है जो एक तारीख के साथ आती है। जब संविधान अपनाया गया तब मूल रूप से ये दो शब्द (समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष) इसमें नहीं थे।

जैन ने कहा कि भारत के संविधान की प्रस्तावना एक निश्चित तिथि के साथ आती है, इसलिए इसमें बिना चर्चा के संशोधन नहीं किया जा सकता है। स्वामी ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि 42वां संशोधन अधिनियम आपातकाल (1975-77) के दौरान पारित किया गया था।

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