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देश के 11 लाख बच्चे बाल विवाह के खतरे में:UP में इन बच्चों की संख्या 5 लाख से ज्यादा; NCPCR ने 2023-24 का डेटा जारी किया

देश के 11 लाख बच्चे बाल विवाह के खतरे में:UP में इन बच्चों की संख्या 5 लाख से ज्यादा; NCPCR ने 2023-24 का डेटा जारी किया

नई दिल्ली5 मिनट पहले
रिपोर्ट ने यह भी कहा कि कुछ जिलों में बाल विवाह की गहराई से जमी हुई सांस्कृतिक प्रथाओं के कारण इसे पूरी तरह से खत्म करना मुश्किल हो रहा है।

नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (NCPCR) ने गुरुवार को एक रिपोर्ट जार कर कहा कि उसने साल 2023-24 में ऐसे 11 लाख बच्चों की पहचान की है, जो बाल विवाह के खतरे में थे।

कमीशन के मुताबिक अकेले उत्तर प्रदेश में ऐसे 5 लाख से अधिक ऐसे बच्चे हैं, जो बाल विवाह के खतरे में हैं।

NCPCR ने बताया कि उसने बाल विवाह रोकने वाले अधिकारियों, जिला प्राधिकरण और अन्य संबंधित एजेंसियों के साथ मिलकर बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत कई कदम उठाए हैं।

कमीशन ने कहा-

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फैमिली काउंसिलिंग, स्कूल में बच्चों का दोबारा दाखिला कराकर और कानूनी एजेंसियों की मदद लेकर बच्चों की शादी को रोकने की कोशिश की जा रही है।

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कई जिला अधिकारियों से वर्चुअल मीटिंग के बाद तैयार की गई रिपोर्ट यह रिपोर्ट वर्चुअल रिव्यू मीटिंग्स के बाद तैयार की गई, जिसमें जिला अधिकारियों और अन्य संबंधित अधिकारियों के साथ बातचीत की गई। रिपोर्ट में ऐसे बच्चों का डेटा पेश किया गया, जिनके स्कूल छोड़ने का खतरा था।

स्कूल छोड़ना बाल विवाह में योगदान देने वाली एक बड़ी वजह है। इसे मुद्दे को लेकर उत्तर प्रदेश सबसे सक्रिय रहा, उसके बाद मध्य प्रदेश और ओडिशा जैसे राज्यों ने भी इस पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दिखाई।

कमीशन के मुताबिक बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई में 1.2 करोड़ से भी ज्यादा लोगों को जागरूकता अभियान में जोड़ा गया। इस अभियान के तहत उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश सबसे आगे रहे।

NCPCR अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एक लेटर लिखकर बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई जारी रखने के महत्व पर जोर दिया।

कमीशन ने बच्चों को स्कूल रूटीन पर नजर रखी कमीशन ने लगातार 30 दिन तक स्कूलों पर नजर रखी और ये देखा कि कौन से बच्चे बिना बताए ज्यादा गैरहाजिर रहते हैं। साथ ही कमीशन ने स्कूल अथॉरिटीज से बातचीत करके बच्चों के स्कूल छोड़ने पर भी नजर रखी।

कमीशन के अधिकारियों ने कर्नाटक और असम जैसे राज्यों में धार्मिक नेताओं, विवाह समारोहों में सेवा प्रदान करने वाले लोगों और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं जैसे प्रमुख स्थानीय व्यक्तियों के साथ 40,000 से ज्यादा बैठकें कीं, ताकि जागरूकता बढ़ाई जा सके और नाबालिग बच्चों का विवाह रोका जा सके।

NCPCR की रिपोर्ट में बताया गया कि इन कोशिशों के बावजूद गोवा और लद्दाख जैसे कुछ राज्यों में डेटा कलेक्शन और कानून का पालन करवाने में में कमियां रहीं। इसके चलते सारी जानकारी जुटाने में परेशानी हुई।

सांस्कृतिक प्रथाओं के चलते बाल विवाह को खत्म करना मुश्किल रिपोर्ट ने यह भी कहा कि कुछ जिलों में बाल विवाह की गहराई से जमी हुई सांस्कृतिक प्रथाओं के कारण इसे पूरी तरह से खत्म करना मुश्किल हो रहा है। NCPCR अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एक लेटर लिखकर बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई जारी रखने के महत्व पर जोर दिया।

उन्होंने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों से अपील की कि बाल विवाह रोकने के लिए जिला लेवल की कोशिशों को लागू करें। रिपोर्ट के साथ भेजी गई चिट्‌ठी में उन्होंने खासतौर से जागरूकता बढ़ाने और मौजूदा कानूनों को लागू करने में सरकार और राज्य की सहायक भूमिका पर जोर दिया।

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