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17 लाख मदरसा स्टूडेंट सरकारी स्कूल नहीं भेजे जाएंगे:सुप्रीम कोर्ट ने UP मदरसा एक्ट बरकरार रखा, लेकिन PG-रिसर्च सिलेबस तय करने पर रोक

17 लाख मदरसा स्टूडेंट सरकारी स्कूल नहीं भेजे जाएंगे:सुप्रीम कोर्ट ने UP मदरसा एक्ट बरकरार रखा, लेकिन PG-रिसर्च सिलेबस तय करने पर रोक

उत्तर प्रदेश7 घंटे पहले
उत्तर प्रदेश सरकार ने UP मदरसा बोर्ड एजुकेशन एक्ट 2004 बनाया था। राज्य सरकार ने 2022 में मदरसों का सर्वे भी कराया था।

सुप्रीम कोर्ट ने UP बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट की वैधता बरकरार रखी है। यानी उत्तर प्रदेश में मदरसे चलते रहेंगे और 16000 मदरसों में पढ़ने वाले 17 लाख स्टूडेंट सरकारी स्कूल नहीं भेजे जाएंगे।

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश सुनाते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट का वह फैसला खारिज कर दिया, जिसमें मदरसा एक्ट को असंवैधानिक बताया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- UP मदरसा एक्ट के सभी प्रावधान मूल अधिकार या संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर का उल्लंघन नहीं करते हैं।

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने मदरसा एक्ट के उस प्रावधान पर रोक लगा दी, जिसमें मरदसों को PG और रिसर्च का सिलेबस तय करने का अधिकार था। यानी अब मदरसा बोर्ड हायर एजुकेशन का सिलेबस और किताबें तय नहीं कर पाएंगे।

5 अप्रैल 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने मदरसा एक्ट को असंवैधानिक करार देने वाले फैसले पर रोक लगा दी थी। केंद्र और UP सरकार से इस पर जवाब भी मांगा था।

इस मामले में 22 अक्टूबर 2024 को चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच में सुनवाई हुई थी। चीफ जस्टिस ने कहा था- धर्मनिरपेक्षता का मतलब है- जियो और जीने दो।

एक्ट के खिलाफ 2012 में पहली बार दाखिल हुई थी याचिका 2004 में मुलायम सरकार ने मदरसा एक्ट 2004 लागू किया। इसके खिलाफ पहली बार 2012 में याचिका दायर हुई। ये याचिका दारुल उलूम वासिया मदरसा के मैनेजर सिराजुल हक ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में दाखिल की थी। फिर 2014 में माइनॉरिटी वेलफेयर लखनऊ के सेक्रेटरी अब्दुल अजीज, 2019 में लखनऊ के मोहम्मद जावेद ने याचिका दायर की थी।

इसके बाद 2020 में रैजुल मुस्तफा ने दो याचिकाएं दाखिल की थीं। 2023 में अंशुमान सिंह राठौर ने याचिका दायर की। सभी मामलों का नेचर एक था। सभी ने एक्ट को रद्द करने की मांग की थी। कहा था- धार्मिक शिक्षा से समाज में भेदभाव पैदा हो रहा। इसके बाद कोर्ट ने सभी याचिकाओं को मर्ज कर दिया।

हाईकोर्ट ने कहा था- विभिन्न धर्मों के बच्चों के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता 22 मार्च, 2024 को हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने 86 पेज का फैसला सुनाया। कोर्ट ने मदरसा को असंवैधानिक घोषित कर दिया। इसके साथ ही यूपी सरकार को स्कीम बनाकर मदरसों के बच्चों को सरकारी स्कूल में भेजने को कहा था।

कोर्ट ने कहा- यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन है। विभिन्न धर्मों के बच्चों के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता। धर्म के आधार पर उन्हें अलग-अलग प्रकार की शिक्षा मुहैया नहीं कराई जा सकती। अगर ऐसा किया जाता है तो यह धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- हाईकोर्ट प्रथमदृष्टया सही नहीं हाईकोर्ट के फैसले को मदरसा अजीजिया इजाजुतूल उलूम के मैनेजर अंजुम कादरी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। 5 अप्रैल, 2024 को सुप्रीम कोर्ट में पहली बार सुनवाई हुई। कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- हाईकोर्ट प्रथमदृष्टया सही नहीं है। ये कहना गलत होगा कि यह मदरसा एक्ट धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन करता है। यहां तक कि यूपी सरकार ने भी हाईकोर्ट में मदरसा एक्ट का बचाव किया था। इसके बाद 22 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई और कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।

देश में धार्मिक शिक्षा कभी भी अभिशाप नहीं रही… कोर्ट का कहना था कि मदरसों के छात्रों को दूसरे स्कूल में ट्रांसफर करने का निर्देश देना ठीक नहीं है। देश में धार्मिक शिक्षा कभी भी अभिशाप नहीं रही है। बौद्ध भिक्षुओं को कैसे प्रशिक्षित किया जाता है? अगर सरकार कहती है कि उन्हें कुछ धर्मनिरपेक्ष शिक्षा प्रदान की जाए तो यह देश की भावना है।

यह कॉन्सेप्ट इमेज है। 22 मार्च को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मदरसा एक्ट 2004 को रद्द कर दिया था।

इस मामले से इतर यूपी सरकार ने मदरसों का सर्वे भी कराया था, चलिए जानते हैं…. दरअसल, UP सरकार को सामाजिक संगठनों और सुरक्षा एजेंसियों से इनपुट मिले थे कि अवैध तरीके से मदरसों का संचालन किया जा रहा है। इस आधार पर उत्तर प्रदेश परिषद और अल्पसंख्यक मंत्री ने सर्वे कराने का फैसला लिया था। इसके बाद हर जिले में 5 सदस्यीय टीम बनाई गईं। इसमें जिला अल्पसंख्यक अधिकारी और जिला विद्यालय निरीक्षक शामिल थे।

इसके बाद 10 सितंबर 2022 से 15 नवंबर 2022 तक मदरसों का सर्वे कराया गया था। इस टाइम लिमिट को बाद में 30 नवंबर तक बढ़ाया गया। इस सर्वे में प्रदेश में करीब 8441 मदरसे ऐसे मिले थे, जिनकी मान्यता नहीं थी। सबसे ज्यादा मुरादाबाद में 550 गैर मान्यता प्राप्त मदरसे मिल थे। इसके बाद सिद्धार्थनगर में 525 और बहराइच में 500, बस्ती में 350 मदरसे बिना मान्यता मिले थे।

राजधानी लखनऊ में 100 मदरसों की मान्यता नहीं थी। इसके अलावा प्रयागराज-मऊ में 90, आजमगढ़ में 132 और कानपुर में 85 से ज्यादा मदरसे गैर मान्यता प्राप्त मिले थे।

सरकार के मुताबिक प्रदेश में फिलहाल 15 हजार 613 मान्यता प्राप्त मदरसे हैं। अक्टूबर 2023 में UP सरकार ने मदरसों की जांच के लिए SIT का गठन किया था। SIT मदरसों को हो रही विदेशी फंडिंग की जांच कर रही है।

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