पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया है। हालांकि उन्होंने पार्टी से इस्तीफा नहीं दिया है। उन्होंने मंगलवार शाम अखिलेश यादव को लेटर भेजा।
इसमें उन्होंने लिखा, ”मैंने पार्टी का जनाधार बढ़ाने की हर कोशिश की। जब मैं पार्टी का जनाधार बढ़ाने के लिए कोई भी बयान देता हूं, तो पार्टी के कुछ छुटभैया और कुछ बड़े नेता इसे मौर्य जी का निजी बयान बताते हैं। बढ़ा हुआ जनाधार पार्टी का और जनाधार बढ़ाने का प्रयास और बयान पार्टी का न होकर निजी कैसे?
अगर राष्ट्रीय महासचिव पद में भी भेदभाव है, तो में समझता हूं ऐसे भेदभाव पूर्ण, महत्वहीन पद पर बने रहने का कोई औचित्य नहीं है। इसलिए मैं इस्तीफा दे रहा हूं।”
अब हूबहू पढ़िए जो उन्होंने लेटर में लिखा…
जब से मैं समाजवादी पार्टी में शामिल हुआ। तब से लगातार जनाधार बढ़ाने की कोशिश की। सपा में शामिल होने के दिन ही मैंने नारा दिया था- पच्चासी तो हमारा है, 15 में भी बंटवारा है। हमारे महापुरुषों ने भी इसी तरह की लाइन खींची थी। भारतीय संविधान निर्माता बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर ने “बहुजन हिताय बहुजन सुखाय” की बात की। तो डॉ. राम मनोहर लोहिया ने कहा कि “सोशलिस्टों ने बांधी गांठ, पिछड़ा पावै सौ में साठ”। इसी प्रकार सामाजिक परिवर्तन के महा-नायक काशीराम साहब का नारा था- “85 बनाम 15 का”।
2022 विधानसभा चुनाव में अचानक प्रत्याशियों के बदलने के बावजूद पार्टी का जनाधार बढ़ाने में सफल रहा। उसी का परिणाम था कि सपा के पास जहां 2017 में सिर्फ 45 विधायक थे। ये संख्या बढ़कर 110 हो गई। बिना किसी मांग के आपने मुझे विधान परिषद में भेजा और ठीक इसके बाद राष्ट्रीय महासचिव बनाया। इस सम्मान के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद।
पार्टी को ठोस जनाधार देने के लिए जनवरी-फरवरी 2023 में मैंने आपके पास एक सुझाव रखा। मैंने कहा कि बेरोजगारी और महंगाई, किसानों की समस्याओं और लोकतंत्र संविधान को बचाने के लिए हमें रथ यात्रा निकालनी चाहिए। जिस पर आपने सहमति जताई। कहा था कि होली के बाद इस यात्रा को निकाला जाएगा। आश्वासन के बाद भी कोई सकारात्मक परिणाम नहीं आया। मैंने दोबारा कहना उचित नहीं समझा।
पाखंड पर प्रहार किया, तो पार्टी के छुटभैया नेताओं ने मेरा निजी बयान बताया
पार्टी का जनाधार बढ़ाना मैंने अपने तौर-तरीके से जारी रखा। जो आदिवासियों, दलितों और पिछड़ों को जाने-अनजाने भाजपा के मकड़जाल में फंसकर भाजपा मय हो गए थे। उनके सम्मान और स्वाभिमान को जगाकर वापस लाने की कोशिश की। मगर पार्टी के ही कुछ छुटभैया और कुछ बड़े नेताओं ने “मौर्य जी का निजी बयान है” कहकर इस धार को कुंठित करने की कोशिश की।
फिर भी मैंने अन्यथा नहीं लिया। मैंने ढोंग-ढकोसला, पाखंड और आडंबर पर प्रहार किया। इसे भी पार्टी के कुछ ने मेरा निजी बयान बताया। मुझे इसका भी मलाल नहीं। इसके बाद भी मैं लोगों को सपा के साथ जोड़ने के अभियान में लगा रहा।