ग्राउंड रिपोर्ट
जयपुर टैंकर ब्लास्ट- पोटली में मिले ट्रक ड्राइवर के अवशेष:चश्मदीद बोला- मेरे सामने बस आग का गोला बन गई, हादसे की 4 दर्दभरी कहानियां
जयपुर6 घंटे पहलेलेखक: मोहम्मद इमरान
QuoteImage
मैं और मेरे कुछ साथी बस के शीशे तोड़कर बाहर निकले। हमारे निकलते ही बस आग का गोला बन गई। धमाका हुआ और आग की लपटें आसमान छूने लगीं।
QuoteImage
जयपुर में LPG टैंकर ब्लास्ट में बाल-बाल बचे नरेश मीणा हादसे के मंजर को यादकर सिहर जाते हैं। वे उस स्लीपर बस में सवार थे, जो हादसे के दौरान जल गई थी। जयपुर में एलपीजी टैंकर ब्लास्ट के हादसे में अब तक 13 मौतें हुई हैं।
कई लोग अस्पताल में भर्ती हैं। हादसे के दूसरे दिन (21 दिसंबर) को भास्कर टीम जयपुर के सवाई मान सिंह (SMS) हॉस्पिटल गई तो कई दर्दनाक कहानियां सामने आईं। एक कहानी थी संजेश यादव की, वो ट्रक के ड्राइवर थे, इतनी बुरी तरह जले कि सिर्फ हड्डियां मिलीं। इंद्रजीत उनके भाई थे, भाई के अवशेष पाने के लिए उन्हें डीएनए सैंपल देना पड़ा। पढ़िए ऐसी 4 कहानियां…
पहले हादसे की तस्वीर
20 दिसंबर की सुबह करीब पौने छह बजे LPG टैंकर ब्लास्ट के बाद जयपुर-अजमेर हाईवे आग की गोलों की चपेट में था।
पहली कहानी- नरेश बस में सवार थे, शीशा तोड़कर निकले
उदयपुर से स्लीपर बस में बैठकर नरेश कुमार मीणा अपने साथियों के साथ जयपुर नौकरी के लिए डॉक्यूमेंट्स वेरिफाई कराने आए थे।
नरेश ने बताया,”हादसे के बाद धमाके से हमारी आंख खुली। किसी ने बताया आगे ट्रैफिक जाम है। अचानक एलपीजी की तेज गंध आने लगी। कुछ लोग बस से उतरकर देख रहे थे। इतनी देर में गैस पूरी बस में फैल गई। कुछ समझ पाते, इससे पहले तेज धमाका हुआ। हर तरफ आग ही आग थी। बस में चीख-पुकार मच गई। जिसे जहां रास्ता मिला, भागने लगा।
धुएं और अंधेरे के कारण कुछ नजर नहीं आ रहा था। मैं और मेरे कुछ साथी बस के शीशे तोड़कर बाहर निकले। हमारे निकलते ही बस आग का गोला बन गई। आस पास के लोगों ने हमारी मदद की और एंबुलेंस से हॉस्पिटल पहुंचाया। नरेश ने बताया कि उनके 5-6 अन्य साथी भी झुलसे हैं, जो उन्हीं के साथ वार्ड में भर्ती हैं। खुद नरेश के दोनों हाथ-पैर बुरी तरह झुलस गए।”
हादसे में नरेश मीणा का चेहरा और हाथ-पैर बुरी तरह झुलस गए।
दूसरी कहानी- 30 घंटे बाद पोटली में मिलीं भाई की हड्डियां
उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले के रहने वाले संजेश यादव 14 दिसंबर की रात 1:15 बजे गुरुग्राम से NL 01 AG 5923 नंबर का लोडिंग ट्रक लेकर कच्छ (गुजरात) के मुंद्रा पोर्ट के लिए निकले थे। उनके साथ ट्रांसपोर्ट कंपनी के 6 ट्रक और थे। 18 दिसंबर को मुंद्रा पोर्ट पर गाड़ी खाली करके संजेश अपने साथियों के साथ गुरुग्राम (हरियाणा) के मानेसर लौट रहे थे।
भांकरोटा (जयपुर) के पास उनके साथी मनोज कुमार ने उन्हें कॉल कर चाय-पानी के लिए कहीं रुकने को कहा। इस पर संजेश बोले कि आगे जयपुर बाईपास पर ठहर कर इंतजार कर लेना। मैं तुम लोगों से 10 किमी पीछे ट्रैफिक में हूं। इसके बाद दोनों की कोई बात नहीं हुई।
जयपुर बाई पास पर चाय की दुकान पर एक घंटा इंतजार करने के बाद मनोज ने कॉल किया, लेकिन संजेश का फोन स्विच ऑफ आ रहा था। फिर वो आगे बढ़ गए। शाहपुरा पहुंचने पर उन्हें हादसे की जानकारी मिली। मनोज कहते हैं जिंदगी भर इस बात का दुःख रहेगा कि मैं उसकी मदद के लिए जा नहीं सका।
संजेश के दो भाई और ट्रांसपोर्ट कंपनी के मैनेजर भी मॉर्च्युरी में उन्हें तलाश करते पहुंचे। आखिर में एक दुकानदार ने उन्हें हादसे के कुछ वीडियो दिखाए, जिसे देखकर उन्होंने ट्रक की पहचान की। मॉर्च्युरी में संजेश की हड्डियां पोटली में बंधी हुई रखी हैं।
भाई इंद्रजीत ने DNA के लिए सैंपल दिया था। मैच होने के बाद परिवार को पोटली सौंपी गई। इंद्रजीत और अमरजीत ने बताया कि संजेश पांच भाई-बहनों में तीसरे नंबर पर था।
इंद्रजीत ने अपने भाई के आखिरी अवशेष पाने के लिए डीएनए का सैंपल दिया था।
तीसरी कहानी- 400 मीटर दौड़े, दीवार कूदकर जान बचाई
आग में झुलसने वालों में एक गजराज सिंह तंवर भी हैं। गजराज अपनी लोडिंग पिकअप जोधपुर से लेकर जयपुर आ रहे थे। गजराज ने बताया, “भांकरोटा (घटनास्थल) के पास जैसे ही मैं अपनी गाड़ी लेकर यू-टर्न वाले कट के पास पहुंचा, चारों ओर धूल का गुबार नजर आया। कुछ भी नहीं दिख रहा था।
पहले लगा कोई एक्सीडेंट हो गया है। गाड़ी को रिवर्स करने की कोशिश की, लेकिन गाड़ी न आगे बढ़ी, न रिवर्स हुई। अचानक हॉर्न बजना शुरू हो गया। ऐसा महसूस हो रहा था जैसे पहिए के नीचे कांच टूट रहा हो। दूसरी गाड़ियों का भी यही हाल था।
कुछ समझ पाते, इससे पहले धमाका हुआ और आग की लपटें आसमान छूने लगीं। जान बचाने के लिए मैं गाड़ी से उतरकर उल्टी दिशा में दौड़ा। 400 मीटर दौड़कर पेट्रोल पंप की दीवार कूदकर खेतों में छिपकर अपनी जान बचाई।
मेरे पीछे भी बुरी तरह झुलसे 10 से 15 लोग जान बचाने के लिए चिल्लाते हुए दौड़ रहे थे। उनमें से कोई भी दीवार तक नहीं पहुंच सका। मेरी भी दोनों जांघें बुरी तरह झुलस गई हैं।”
लोडिंग पिकअप के मालिक गजराज सिंह आग की लपटों के बीच खेतों में छिपकर अपनी जान बचाई।
चौथी कहानी- दरवाजा खोला तो बस में आग फैल गई
हादसे के एक और चश्मदीद 200 फीट बाईपास (जयपुर) निवासी दीवान सिंह उदयपुर से आ रही स्लीपर बस में थे। दीवान सिंह ने बताया, “दिल्ली पब्लिक स्कूल (भांकरोटा) के पास बस बहुत धीरे-धीरे चल रही थी। मुझे लगा शायद टायर पंक्चर हो गया।
थोड़ी ही देर में बस में धुआं ही धुआं हो गया। हम खिड़कियों के कांच तोड़कर बस से बाहर निकले। डबल स्लीपर होने की वजह से ऊपर स्लीपर में सो रहे लोगों को तो बहुत बाद में समझ आया कि हादसा हो गया है। लोग अफरा-तफरी में बस से बाहर निकलने की कोशिश करने लगे। कई इसमें कामयाब नहीं हुए।”
दीवान सिंह भी स्लीपर बस में सवार थे, लेकिन समय रहते निकलने में कामयाब हो गए।
जयपुर-अजमेर हाईवे पर हुआ था हादसा
जयपुर में एलपीजी टैंकर ब्लास्ट के हादसे में अब तक 13 मौतें हुई है। पहले प्रशासन ने मृतकों की संख्या 14 बताई थी, लेकिन 21 दिसंबर देर शाम FSL की जांच में सामने आया कि बोरी में जो 2 शव के अवशेष आए थे, वो 2 नहीं बल्कि एक ही व्यक्ति के थे। जयपुर के अजमेर रोड पर भांकरोटा (DPS स्कूल के पास) में 20 दिसंबर की सुबह हुए एक्सीडेंट में 4 लोग मौके पर ही जिंदा जल गए, जबकि 9 झुलसे लोगों की सवाई मानसिंह हॉस्पिटल में इलाज के दौरान मौत हो गई। हॉस्पिटल की बर्न यूनिट में अब भी 31 लोग एडमिट हैं। इनमें करीब 20 लोग 80 फीसदी तक झुलसे हैं। हॉस्पिटल लाए गए कुछ शवों की पहचान अब तक नहीं हो सकी है।