Headlines

2001 का कुंभ वैभव और तकनीक का संगम था:राम मंदिर का मॉडल पहली बार दर्शन के लिए रखा गया, दलाई लामा भी आए

21वीं सदी के पहले महाकुंभ का आयोजन भी प्रयागराज में हुआ था। 2001 का महापर्व इलेक्ट्रॉनिक और सैटेलाइट युग आने के बाद पहला कुंभ मेला था। इस दौरान अध्यात्म और संस्कृति के साथ टेक्नोलॉजी की जुगलबंदी दिखी। इसी कुंभ में बौद्ध गुरु दलाई लामा भी आए थे।

पहली बार उत्तर प्रदेश सरकार ने मेले की आधिकारिक वेबसाइट बनवाई और कुंभ के वैभव को इंटरनेट के जरिए दुनिया के सामने पेश किया। मेला क्षेत्र में इंटरनेट सुविधा से लैस 20 कियोस्क और साइबर कैफे बनाए गए।

इसे कवर करने दो दर्जन से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय प्रिंट और टीवी मीडिया हाउस आए। ऑन द स्पॉट स्टूडियो बनाए गए। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस कुंभ में श्रद्धालुओं की संख्या 7 करोड़ पार कर गई, जो रिकॉर्ड था।

2001 के कुंभ में ये 3 काम भी पहली बार हुए…

पहली बार कुंभ मेला क्षेत्र में लोग मोबाइल फोन के साथ थे और दूर-दराज बैठे अपनों को कुंभ के ‘वाचिक पुण्य’ से जोड़ रहे थे।
पहली बार यूपी के पर्यटन विभाग के साथ कुछ होटलों, टूर-ट्रैवल एजेंसियों ने लग्जरी सुविधाएं देने की शुरुआत की।
पहली बार कंप्यूटर से जन्म-कुण्डली बनाने के स्टॉल लगे और फोन के लिए पीसीओ बने थे।
प्रयाग में ही राम मंदिर शिलान्यास-​शिलापूजन का संकल्प
2001 के कुम्भ में पहली बार अयोध्या के प्रस्तावित राम मंदिर का मॉडल रखा गया। मेले के सेक्टर सात में विश्व हिंदू परिषद के शिविर में यह मॉडल रखा गया। यहीं 19 से 21 जनवरी तक विहिप ​की नौंवीं धर्म संसद हुई।

श्रीराम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत परमहंस रामचंद्रदास ने मंदिर निर्माण का संकल्प दिलाया। इससे पहले 1989 के प्रयाग कुम्भ में तृतीय धर्मसंसद में परमहंस रामचंद्र दास की अगुआई में अयोध्या में शिला पूजन व शिलान्यास का निर्णय लिया गया था।

2001 के कुंभ में हजारों लोगों ने कतारों में लगकर राम मंदिर मॉडल के दर्शन किए।
बौद्ध गुरु दलाई लामा पहली बार कुंभ आए
इस मेले में भारत की धार्मिक विविधता भी देखने को मिली। बौद्ध धर्म के सर्वोच्च आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा इस कुंभ में आए और ‘संत समागम’ में भाग लिया था। उन्होंने साधुओं-संतों का सम्मान किया और गंगा आरती की। उन्होंने कहा था- कुंभ में आना भारतीय आध्यात्मिक परम्परा को समझने का अवसर है।

दलाई लामा 2001 में पहली बार कुंभ में आए थे।
गुजरात भूकंप के चलते शाही स्नान सादगी से हुआ
2001 के कुंभ में मौनी अमावस्या (24 जनवरी) के शाही स्नान में लाखों लोग शामिल हुए। ठीक दो दिन बाद यानी 26 जनवरी को गुजरात के कच्छ और भुज में भयावह भूकंप में सैकड़ों लोगों को जान चली गई। इस प्राकृतिक आपदा की छाया कुंभ तक देखी गई।

29 जनवरी को बसंत पंचमी पर अंतिम शाही स्नान बेहद सादगी से हुआ। बैंड-बाजे नहीं बजाए गए, साधु-संतों ने संगम में स्नान के बाद भूकंप में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि दी। उस दिन कुंभ नगरी के सभी आयोजन स्थगित कर दिए गए थे।

—————————————–

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Budget 2024