भोपाल। मध्य प्रदेश में ओबीसी और जातिवार गणना को कांग्रेस मुद्दा नहीं बना पाई। विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपनी भारत जोड़ो यात्रा में इस मुद्दे को उठाया था लेकिन जनता में इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। दरअसल, इसकी कई वजह हैं। पहली तो यह कि कांग्रेस ने ओबीसी आरक्षण को 14 से बढ़ाकर 27 करने की बात तो कही लेकिन कभी ओबीसी नेतृत्व को आगे नहीं बढ़ाया।
जब तक नेतृत्व कमल नाथ और दिग्विजय सिंह के हाथ रहा तो सारे ओबीसी नेता हाशिये पर रहे। इन दिग्गजों ने कभी अरुण यादव या जीतू पटवारी जैसे नेताओं को मुख्यधारा में भी नहीं आने नहीं दिया। इन आक्रामक नेताओं की जगह कमलेश्वर पटेल का चेहरा दोनों दिग्गज सामने लाते रहे। यही कारण है कि ओबीसी वर्ग का भरोसा कांग्रेस जीत नहीं पाई।
इधर, भाजपा में देखें तो ओबीसी नेताओं की लंबी कतार है। ओबीसी के चार मुख्यमंत्री भाजपा दे चुकी है। विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस से ज्यादा भाजपा ने ओबीसी को टिकट दिया। अब लोकसभा की बात करें तो भी भाजपा ने 11 प्रत्याशी इस वर्ग के दिए हैं। जिला पंचायत से लेकर नगरपालिका और महापौर में भी ओबीसी की संख्या सर्वाधिक है। ऐसे अनेक कारण है कि मध्य प्रदेश में ओबीसी की जातिवार गणना कभी सियासी मुद्दा नहीं बन पाई।
कांग्रेस के पास ओबीसी वर्ग से गिने-चुने चेहरे
ओबीसी और जातिवार गणना को कांग्रेस ने मुद्दा बनाने का प्रयास किया तो भाजपा ने इसे जमकर भुनाया, कांग्रेस को घेरा और नए नेतृत्व को आगे भी बढ़ाया। प्रदेश में उमा भारती, बाबूलाल गौर, शिवराज सिंह चौहान और अब डा. मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाया तो प्रहलाद पटेल, उदय प्रताप सिंह, नरेंद्र शिवाजी पटेल, कृष्णा गौर सहित अन्य नेताओं को आगे बढ़ाया लेकिन कांग्रेस में ओबीसी नेताओं का टोटा है।
विंध्य से आने वाले राजमणि पटेल को राज्यसभा भेजकर आगे बढ़ाने का प्रयास किया लेकिन वे भी प्रभाव नहीं छोड़ पाए। समाजवादियों का गढ़ कहे जाने वाले इसी अंचल में कमलेश्वर पटेल को आगे बढ़ाया, सीडब्ल्यूसी का सदस्य बनाया लेकिन वह भी सफल नहीं हो पाए। दरअसल, मध्य प्रदेश में कांग्रेस के पास गिने-चुने चेहरे ही हैं। यही कारण है कि वह इस मुद्दे पर भाजपा की घेराबंदी को तोड़ नहीं पाती है।
यहां मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव की कैबिनेट में 11 मंत्री ओबीसी के हैं। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद ओबीसी से आते थे, तो उनकी 34 सदस्यीय कैबिनेट में 12 मंत्री ओबीसी के थे, जबकि 2019-20 में कमल नाथ सरकार की 29 सदस्यीय कैबिनेट में ये आंकड़ा सात था। केंद्र में भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ओबीसी से हैं, उनकी कैबिनेट में 27 मंत्री इसी वर्ग से आते हैं। मध्य प्रदेश में कांग्रेस के साथ यह मुश्किल है कि उसके पास ओबीसी वर्ग से गिने-चुने चेहरे हैं, लेकिन आपसी खींचतान में वह संगठन में ही अस्तित्व का संघर्ष करते नजर आ रहे हैं।
टिकट बांटने से लेकर प्रतिनिधित्व देने में भाजपा आगे
संसद के दोनों सदनों में महिला आरक्षण का प्रस्ताव पास हुआ और कानून बना तो राहुल गांधी से लेकर कमल नाथ ने इसमें भी ओबीसी के लिए अलग से आरक्षण की मांग की, लेकिन मप्र के ही चुनाव में कहीं भी इसका शोर सुनाई नहीं दिया। विधानसभा चुनाव के टिकट बांटते समय कांग्रेस ने अपने ही ओबीसी और महिला आरक्षण के मुद्दे को पंचर कर दिया। भाजपा ने विधानसभा चुनाव में कुल 230 में से 66 प्रत्याशियों को टिकट दिया तो कांग्रेस इसमें पीछे रह गई।
कांग्रेस ने 62 ओबीसी प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे। भाजपा ने छह ओबीसी महिलाओं को प्रत्याशी बनाया तो कांग्रेस मात्र पांच ओबीसी महिलाओं को टिकट दे पाई। आशय यह कि ओबीसी आरक्षण और जातिवार गणना की वकालत कांग्रेस करती रही, लेकिन ओबीसी वर्ग के हितों का ध्यान रखने में वह भाजपा से पीछे रही। यही वजह थी कि ओबीसी वर्ग ने भी कांग्रेस का साथ नहीं दिया।
मध्य प्रदेश में ऐसा दावा किया जाता है कि ओबीसी जनसंख्या 50 प्रतिशत के आसपास है। मौजूदा लोकसभा चुनाव में भी भाजपा ने 29 संसदीय सीटों में 11 ओबीसी प्रत्याशी बनाए। इनमें से तीन महिलाएं हैं। हालांकि, कांग्रेस द्वारा अब तक घोषित 10 सीटों के प्रत्याशियों में से सात सुरक्षित है। वहीं बची हुई तीन में से दो सीट पर ओबीसी वर्ग से प्रत्याशी दिए गए हैं। माना जा रहा है कि कांग्रेस बची हुई सीट में ओबीसी प्रत्याशियों की संख्या बढ़ाएगी।
कांग्रेस ने ओबीसी हितों की हमेशा अनदेखी की- भूपेंद्र सिंह
मप्र के वरिष्ठ ओबीसी नेता और पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह कहते हैं कि भाजपा ने हमेशा ओबीसी वर्ग के हितों का संरक्षण किया लेकिन कांग्रेस ने अनदेखी की। भाजपा ने ही ओबीसी आयोग को संवैधानिक मान्यता दी। मध्य प्रदेश में भी ओबीसी कल्याण आयोग बनाया। आयोग ने मप्र में ओबीसी की गणना कराई और अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत की।
इस रिपोर्ट के आधार पर मप्र में नगरीय निकाय और पंचायत राज संस्थाओं में ओबीसी आरक्षण मिल पाया था। इसी रिपोर्ट के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने माना कि मप्र में ओबीसी 50 से 52 प्रतिशत के आसपास हैं। इसके विपरीत कांग्रेस ने ओबीसी आरक्षण का विरोध किया था। हमने ओबीसी वर्ग के हितों की लड़ाई लड़ी तो कांग्रेस नेता और वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तन्खा ने मेरे सहित पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान और विष्णु दत्त शर्मा के खिलाफ 10 करोड़ की मानहानि का मुकदमा लगाया है।
भाजपा ने केवल ओबीसी मुखौटा दिखाए
प्रदेश कांग्रेस के मोर्चा प्रकोष्ठों के प्रभारी और कमल नाथ सरकार में राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष रहे जेपी धनोपिया कहते हैं कि भाजपा ने ओबीसी वर्ग के हित में कभी कोई काम नहीं किया। चार मुख्यमंत्री अवश्य ओबीसी वर्ग के दिए पर वे केवल मुखौटा रहे।
कमल नाथ सरकार ने सरकारी नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण का नियम बनाया पर इसे भाजपा ने लागू नहीं किया। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ओबीसी से हैं और राज्य सभा भी अशोक सिंह को भेजा, जो ओबीसी हैं। टिकट वितरण में भी ध्यान रखा जा रहा है। जातिवार गणना का मुद्दा कांग्रेस ने ही उठाया है और इसे आगे तक ले जाने का संकल्प पार्टी ने लिया है।