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जस्टिस नागरत्ना बोलीं-नोटबंदी से काला धन सफेद में बदला:विधानसभा से पास हुए बिलों को राजभवन में लटकाने पर कहा- गवर्नर संविधान का पालन करें

नागरत्ना ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के लॉ डिपार्टमेंट से LLB की है। 30 अगस्त 2021 को उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के जज की शपथ ली थी।

सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस बीवी नागरत्ना ने नोटबंदी पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने हैदराबाद में नालसार यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ में ‘कोर्ट्स एंड द कॉन्स्टिट्यूशन’ सम्मेलन में शनिवार को कहा- नोटबंदी से काला धन सफेद में बदला। हम ​सब जानते हैं कि 8 नवंबर 2016 को क्या हुआ था। तब चलन में 86% करेंसी 500 और 1000 रुपए की थी।

उन्होंने कहा- उस मजदूर की कल्पना कीजिए जिसे रोजमर्रा की जरूरतों के लिए नोटों को बदलना पड़ा। इसके बाद 98% करेंसी वापस आ गई, तो कालेधन का खात्मा कहां हुआ (जो उसका लक्ष्य था)? यह कालेधन को सफेद बनाने का एक अच्छा तरीका था, जिससे बेनामी नकदी सिस्टम में शामिल हो रही थी। इसके बाद आयकर कार्यवाही का क्या हुआ, यह हम नहीं जानते।

दरअसल, बीते साल जनवरी में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने नोटबंदी के फैसले को 4-1 से वैध ठहराया था। उस बेंच की सदस्य रहीं जस्टिस नागरत्ना ने नोटबंदी को असंवैधानिक करार दिया था।

इसके अलावा उन्होंने राज्यों-राज्यपालों के बीच विवाद पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि हाल ही में यह चलन बन गया है कि राज्यपाल द्वारा बिलों को मंजूरी देने में चूक या उनके द्वारा किए जाने वाले अन्य कार्य मुकदमेबाजी का मुद्दा बन जाते हैं। यह एक गंभीर संवैधानिक पद है और राज्यपालों को संविधान के अनुसार काम करना चाहिए ताकि ऐसे मुकदमे कम हों।

दरअसल, हाल ही में केरल और तमिलनाडु की राज्य सरकारों ने गवर्नर पर बिल रोकने और लटकाने के आरोप लगाए थे। इसे लेकर नागरत्ना ने कहा- राज्यपालों को यह बताया जाना ठीक नहीं है कि उन्हें क्या करना है या नहीं करना है। मुझे लगता है अब वह समय आ गया है जहां उन्हें बताया जाएगा कि वे संविधान के अनुसार कर्तव्यों का पालन करें।

सुप्रीम कोर्ट में सिर्फ नागरत्ना ने नोटबंदी का विरोध किया था
2 जनवरी 2023 को सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ ने नोटबंदी पर अपना फैसला सुनाया था। संविधान पीठ ने फैसला चार-एक के बहुमत से सुनाया है। जस्टिस एस अब्दुल नजीर, बीआर गवई, एएस बोपन्ना और वी रामसुब्रमण्यम ने कहा है कि नोटबंदी की प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी नहीं है। सिर्फ जस्टिस बीवी नागरत्ना ने बहुमत से अलग राय देते हुए नोटबंदी के फैसले को ‘गैरकानूनी’ करार दिया है। पढ़िए उन्होंने नोटबंदी के खिलाफ क्या कहा था…

जस्टिस नागरत्ना के 4 बड़े फैसलों और टिप्पणियों को पढ़िए…

1. ‘मंदिर बिजनेस की जगह नहीं, कर्मचारियों को ग्रेच्युटी नहीं मिलेगी’

2018 में जस्टिस नागरत्ना की अध्यक्षता वाली पीठ का एक फैसला खूब चर्चा में रहा था। जब पीठ ने श्री मूकाम्बिका मंदिर बनाम श्री रविराजा शेट्‌टी के केस की सुनवाई करते हुए अधिनियम 1972 का हवाला देकर कहा कि मंदिर बिजनेस की जगह नहीं हैं, इसलिए इसके कर्मचारी ग्रेच्युटी भुगतान के अधिकारी नहीं माने जा सकते हैं। उनके इस फैसले पर जमकर बहस हुई थी।

2. प्रवासी मजदूरों के मामले में राज्य सरकार को लगाई फटकार

30 मई 2020 को कर्नाटक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस अभय ओका और जस्टिस नागरत्ना ने एक फैसला सुनाया। अपने फैसले में जजों ने लॉकडाउन के बाद प्रवासी मजदूरों की खराब हालत को लेकर राज्य सरकार को फटकार लगाई।

जजों ने 6 लाख से ज्यादा मजदूरों के लिए रहने, खाने और इन मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाने की उचित व्यवस्था करने का आदेश दिया था। इस फैसले की खूब सराहना हुई थी।

3. ‘दुनिया में कोई भी बच्चा बिना मां-बाप के पैदा नहीं होता’

साल 2021 में जस्टिस नागरत्ना की अध्यक्षता वाली एक खंडपीठ ने कर्नाटक पावर ट्रांसमिशन कॉर्पोरेशन के एक सर्कुलर के खिलाफ अहम फैसला सुनाया था। दरअसल, सर्कुलर में कहा गया था कि एक कर्मचारी की दूसरी पत्नी या उसके बच्चे अनुकंपा नियुक्ति के पात्र नहीं हैं।

उन्होंने कहा, ‘इस दुनिया में कोई बच्चा बिना मां-बाप के पैदा नहीं होता। बच्चे के पैदा होने में खुद उसका कोई योगदान नहीं होता। इसलिए कानून को इस तथ्य को स्वीकार कर लेना चाहिए कि नाजायज मां-बाप हो सकते हैं, लेकिन नाजायज बच्चे नहीं।’

4. केंद्र के फैसले पर 5 साल पहले भी हो चुका है टकराव

ये पहली दफा नहीं है जब जस्टिस नागरत्ना ने केंद्र के किसी फैसले को गलत ठहराया है। इससे पहले भी उनकी अध्यक्षता वाली पीठ ने 2017 में ‘द टोबैको इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया’ बनाम ‘यूनियन ऑफ इंडिया’ के केस पर फैसला सुनाते हुए केंद्र के उस फैसले को रद्द कर दिया था, जिसमें केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने तंबाकू उत्पाद की 85% पैकेजिंग को सचित्र स्वास्थ्य चेतावनी के साथ कवर करना अनिवार्य किया था।

इस नियम को गैर-संवैधानिक बताते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट ने केंद्र के इस फैसले को रद्द कर दिया था। कोर्ट ने कहा था- केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के पास नियमों में इस तरह के संशोधन करने के अधिकार नहीं हैं।

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