भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने उस स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) को बताने से इनकार किया है, जिसके तहत इलेक्टोरल बॉन्ड्स बेचे और भुनाए गए। इन बॉन्ड्स को SBI की ऑथराइज्ड ब्रांचों से जारी किया गया था। एक RTI के जवाब में SBI ने कहा कि कुछ चीजें ‘कॉमर्शियल कॉन्फिडेंस’ के तहत आती हैं।
SBI की तरफ से कहा गया कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम-2018 की SOP हमारी ऑथराइज्ड ब्रांचों के लिए समय-समय पर जारी की गई थीं। बॉन्ड्स को कैसे बेचा जाना है, इसको लेकर बाकायदा इंटरनल गाइडलाइंस थीं। इसके मायने ये हैं कि ये (गाइडलाइंस) संस्थान का अंदरूनी मामला था। इसे RTI एक्ट की धारा 8(1)(d) के तहत छूट मिली हुई है।
ट्रांसपेरेंसी एक्टिविस्ट अंजलि भारद्वाज ने RTI दायर की थी, जिसमें जानकारी मांगी गई थी कि SBI की ऑथराइज्ड ब्रांचों से इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जारी करने की SOP क्या थी।
अब RTI एक्ट के इस खास सेक्शन के बारे में जानिए
RTI एक्ट के सेक्शन 8(1)(d) के तहत व्यवसाय से जुड़ी जानकारियां (कॉमर्शियल कॉन्फिडेंस), ट्रेड सीक्रेट या इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स को छूट मिलती है। इनका खुलासा होने पर संस्था की व्यवसायिक स्थिति को नुकसान हो सकता है। खुलासा तब ही किया जा सकता है, जब तक कि सक्षम प्राधिकारी इस बात से संतुष्ट न हो जाए कि जनहित के लिए ऐसी जानकारी सामने आना जरूरी है।
सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद SBI ने 4 दिन में डीटेल दी
SBI ने 21 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में बताया कि उसने चुनाव आयोग को इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी सारी जानकारी सौंप दी। SBI ने कहा कि नई जानकारी में बॉन्ड्स के सीरियल नंबर भी शामिल हैं। पिछली बार इनकी जानकारी नहीं होने पर सुप्रीम कोर्ट ने SBI के चेयरमैन को फटकार लगाई थी। चुनाव आयोग ने भी नया डेटा अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दिया है।
18 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने SBI को आदेश दिया था कि 21 मार्च की शाम 5 बजे तक हर बॉन्ड का अल्फान्यूमेरिक नंबर और सीरियल नंबर, खरीद की तारीख और राशि सहित सभी जानकारियां दें। बैंक ने दोपहर 3.30 बजे ही कोर्ट में एफिडेविट दाखिल कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने 11 मार्च को SBI को डेडलाइन दी थी
इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी देने से जुड़े केस में SBI की याचिका पर 11 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की थी। SBI ने कोर्ट से कहा था- बॉन्ड से जुड़ी जानकारी देने में हमें कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन इसके लिए कुछ समय चाहिए। इस पर CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने पूछा- पिछली सुनवाई (15 फरवरी) से अब तक 26 दिनों में आपने क्या किया? पूरी खबर पढ़ें…
चुनावी बॉन्ड स्कीम क्या है?
चुनावी या इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम 2017 के बजट में उस वक्त के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पेश की थी। 2 जनवरी 2018 को केंद्र सरकार ने इसे नोटिफाई किया। ये एक तरह का प्रॉमिसरी नोट होता है। इसे बैंक नोट भी कहते हैं। इसे कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी खरीद सकती है।
विवादों में क्यों आई चुनावी बॉन्ड स्कीम?
2017 में अरुण जेटली ने इसे पेश करते वक्त दावा किया था कि इससे राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाली फंडिंग और चुनाव व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी। ब्लैक मनी पर अंकुश लगेगा। वहीं, विरोध करने वालों का कहना था कि इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान जाहिर नहीं की जाती है, इससे ये चुनावों में काले धन के इस्तेमाल का जरिया बन सकते हैं।
बाद में योजना को 2017 में ही चुनौती दी गई, लेकिन सुनवाई 2019 में शुरू हुई। 12 अप्रैल 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पॉलिटिकल पार्टियों को निर्देश दिया कि वे 30 मई, 2019 तक में एक लिफाफे में चुनावी बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारी चुनाव आयोग को दें। हालांकि, कोर्ट ने इस योजना पर रोक नहीं लगाई।
बाद में दिसंबर, 2019 में याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने इस योजना पर रोक लगाने के लिए एक आवेदन दिया। इसमें मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से बताया गया कि किस तरह चुनावी बॉन्ड योजना पर चुनाव आयोग और रिजर्व बैंक की चिंताओं को केंद्र सरकार ने दरकिनार किया था।