‘राम’ की छवि के बावजूद अरुण गोविल मुश्किल में:मेरठ में सपा-बसपा ने पहली बार मुस्लिम कैंडिडेट को टिकट न देकर भाजपा के समीकरण बिगाड़े
‘जो राम को लाए हैं, हम उनको लाएंगे…’
‘राम आएंगे तो अंगना सजाऊंगी…’
मेरठ की गलियों में राम भजन गूंज रहे हैं। भाजपा ने अभिनेता अरुण गोविल को कैंडिडेट बनाया है। टीवी धारावाहिक रामायण के ‘राम’ की छवि पर चुनाव लड़ रहे अरुण की वजह से मेरठ VIP सीट बन गई है। इनकी एंट्री के बाद मेरठ में कास्ट फैक्टर अहम हो गया है। बदलते समीकरण के बीच पहली बार सपा और बसपा ने मुस्लिम कैंडिडेट पर दांव नहीं लगाया।
भाजपा के लिए सियासी लड़ाई दोतरफा है। पहली लड़ाई भाजपा को त्यागी-ठाकुर वोटर्स की नाराजगी पर लड़नी है। दूसरी, मुस्लिम कैंडिडेट नहीं होने से हिंदू वोटर का बिखराव रोकने के मोर्चे पर लड़नी है। अरुण गोविल के कैंडिडेट बनने के बाद सपा और बसपा की सोशल इंजीनियरिंग ने भाजपा की चुनौतियां बढ़ा दी हैं।
इसलिए PM मोदी ने यूपी में प्रचार की शुरुआत मेरठ से की। 15 दिन में CM योगी खुद 3 बार आ चुके हैं। बावजूद इसके भाजपा के लिए मेरठ में मुश्किलें कम नहीं हो रही हैं।
पॉलिटिकल एक्सपर्ट और पब्लिक से बात करने के बाद 3 बातें समझ में आती हैं…
- लगातार 3 लोकसभा चुनाव जीत रहे राजेंद्र अग्रवाल का टिकट भाजपा ने काट दिया। मुंबई से सेलिब्रिटी फेस अरुण गोविल को उतारा गया। भले ही उनका बचपन मेरठ की गलियों में गुजरा हो। मगर पिछले 60 साल से उनके परिवार का मेरठ से ताल्लुक नहीं रहा है। अरुण की पैराशूट एंट्री का अंदरखाने विरोध भी है।
- मेरठ में PM मोदी के फेस पर चुनाव लड़ा जा रहा है। वजह यह भी है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में राजेंद्र अग्रवाल सिर्फ 0.4% के वोट मार्जिन से जीते थे। 2014 में यही वोट मार्जिन 20.9% था। राजेंद्र अग्रवाल सांसद रहते हुए क्षेत्र में नहीं गए। डेवलपमेंट कम होने से पब्लिक में नाराजगी है। इसलिए टिकट भी कटा।
- बसपा ने पहली बार मुस्लिम नहीं, त्यागी कैंडिडेट को टिकट देकर हिंदू कार्ड खेला। सपा ने 3 बार टिकट बदला, आखिरकार दलित को उतारा। मेरठ में 11.18% दलित वोटर हैं। मुस्लिम को सपा कोर वोटर मानती है, वह 22.36% हैं। भाजपा अपने कोर वोटर ठाकुर-त्यागी को साधने के लिए राम नाम का सेफ कार्ड खेल रही है।
पॉलिटिकल एक्सपर्ट
क्या भाजपा के लिए अरुण के जरिए मेरठ में जीत आसान होगी?
VIP सीट बनने के बाद राजनीतिक उतार-चढ़ाव को समझने के लिए हम पॉलिटिकल एक्सपर्ट और सीनियर जर्नलिस्ट हरिशंकर जोशी तक पहुंचे। उन्होंने कहा, “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने पश्चिम यूपी में 7 सीटों को फंसा हुआ माना था। इसमें मेरठ सीट भी शामिल थी। भाजपा के इंटरनल सर्वे में सामने आया कि जॉब, MSP, अग्निवीर जैसे मुद्दे भाजपा के लिए एंटी इनकंबेंसी बना रहे हैं।”
मेरठ में जातिगत समीकरण किसके पक्ष में नजर आते हैं?
हरिशंकर जोशी कहते हैं, “मेरठ में 48% मुस्लिम वोटर हैं। 6-9% आबादी मायावती के कोर वोटर जाटव की है। 2004 के चुनाव में बसपा दलित, जाटव और मुस्लिम वोटर्स के कॉम्बिनेशन पर चुनाव जीत चुकी है। 2019 के चुनाव में जाटव और मुस्लिम वोटर सपा को ट्रांसफर हो गया था। मुस्लिम अब कांग्रेस को भी वोट देने लगा है। त्यागी वोट बसपा को शिफ्ट हो रहा है। राजपूत भाजपा से नाराज हैं। इसलिए जीत का मार्जिन भाजपा के हाथों से फिसलता दिख रहा है। इन फैक्टर पर भाजपा के लिए मेरठ सीट फंसी हुई है।”
सपा के दलित कैंडिडेट के बावजूद बसपा का वोटर बिखर नहीं रहा?
एक्सपर्ट सुशील कुमार कहते हैं, “सपा ने दलित महिला कैंडिडेट को उतारा है। मगर वो दलित चेहरा नहीं हैं। दलितों के लिए कोई बड़ा काम नहीं किया। यही वजह है कि बसपा का कोर वोटर बिखर नहीं रहा है। पार्टी या किसी नेता के आने-जाने का असर इस वोट बैंक पर नहीं है। ये फैक्टर बसपा के फेवर में हैं।”
अब बात पॉलिटिकल पार्टियों की
भाजपा : दलित-OBC के सहारे सीट जीतने की कोशिश
पूर्व PM चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न दिया गया है। मोदी जयंत को छोटा भाई बता रहे हैं। रालोद के जरिए भाजपा ने नाराज जाटों का सपोर्ट हासिल कर लिया है। भाजपा का एजेंडा OBC और दलित वोट को साधने का है। क्योंकि 2019 के चुनाव में OBC सपा के पाले में शिफ्ट हो गया था। यही वजह है कि 31 मार्च को मेरठ में मोदी ने अपनी जनसभा में संजय निषाद, ओपी राजभर, अनुप्रिया पटेल, हरियाणा के सीएम नायब सिंह सैनी को एक साथ लेकर आए।
दलित बिरादरी को मैसेज देने के लिए अरुण गोविल दलित लोगों के घर में भोजन कर रहे हैं। नाराज ठाकुर बिरादरी को मनाने के लिए योगी और राजनाथ सिंह खुद मेरठ पहुंच रहे हैं। 27 मार्च, 31 मार्च और फिर 10 अप्रैल को योगी सभा कर चुके हैं। सपा से गुर्जर टिकट कटने से नाराज गुर्जरों पर भी भाजपा की नजर है।
सपा : कैंडिडेट दलित चेहरा, बाहरी प्रत्याशी का भी मुद्दा बना रहे
अखिलेश मेरठ में प्रचार के लिए 20 अप्रैल को पहुंचेंगे। सपा और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। पहले सपा ने दलित चेहरा भानु प्रताप का टिकट काटा। अतुल प्रधान को मैदान में उतारा। मगर PDA यानी पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक समीकरण बिगड़ते देखकर अखिलेश ने दलित चेहरा सुनीता वर्मा को कैंडिडेट बनाया।
मुस्लिम और जाटव वोटर्स को लेकर सपा आश्वस्त है। भाजपा से नाराज त्यागी बिरादरी को अपने खेमे में लाने की कोशिश सपा कर रही है। साथ ही दलित कैंडिडेट के जरिए बसपा के कोर वोटर में भी सेंध लगा रही है। सपा अपने मंच से बाहरी बनाम लोकल कैंडिडेट का मुद्दा भी उठा रही है।
बसपा : मेरठ में त्यागी कार्ड, याकूब को मुस्लिम साधने की जिम्मेदारी
बसपा ने देवव्रत त्यागी को मैदान में उतारकर भाजपा से नाराज त्यागी बिरादरी को अपनी ओर मिलाने का गेम प्लान खेला है। करीब 12% दलित बसपा का कोर वोटर है। सपा में टिकट नहीं मिलने से नाराज मुस्लिमों को साधने के लिए याकूब कुरैशी को एक्टिव कर दिया है। मुस्लिमों में याकूब की अच्छी पकड़ है। मेरठ में वोटिंग से ठीक 3 दिन पहले मायावती जनसभा करने वाली हैं।
मेरठ की विधानसभा का गणित
राम नाम का मैसेज पश्चिम से पूरब तक
एक्सपर्ट कहते हैं कि पश्चिमी यूपी से लेकर दिल्ली की सियासत क्या करवट लेगी, इसका फैसला मेरठ से होता है। यही वजह है कि भाजपा ने 3 बार के सांसद राजेंद्र अग्रवाल का टिकट काटकर सेलिब्रिटी फेस अरुण गोविल को मेरठ से चुनाव मैदान में उतारा है। मेरठ किसान, जाट और गन्ना बेल्ट से जुड़ा हुआ है।
2014 लोकसभा चुनाव में मुजफ्फरनगर दंगा और कैराना पलायन भाजपा का मुद्दा था। 2019 के चुनाव में राममंदिर बनाने को मुद्दा बनाया गया। 2024 में भाजपा राममंदिर बनवाया, इस संदेश के साथ चुनाव में भाजपा आगे बढ़ रही है। अब पश्चिम में अरुण के जरिए पूर्वांचल तक राम नाम का संदेश दिया गया है।
इससे निपटने के लिए सपा को 3 बार कैंडिडेट बदलने पड़े। बसपा ने भी मुस्लिम नहीं, त्यागी कैंडिडेट उतारा। इतने फेरबदल की वजह से मेरठ वीआईपी सीटों में शुमार हो गई।
अब भाजपा प्रत्याशी के साथ एक दिन…
रामधुन के बीच अरुण का चुनावी कैंपेन
अरुण गोविल को लोगों ने टीवी स्क्रीन पर रामायण सीरियल में देखा। वो भी राम की भूमिका में। वह आज भी उसी छवि में चल रहे हैं। चुनाव प्रचार के दौरान हम उनके साथ रहे। सुबह 9 बजे गोविल जनसंपर्क के लिए निकलते हैं। भगवा कुर्ता-पाजामा और भाजपा पार्टी का कमल वाला पटका उनके गले में रहता है।
अरुण गोविल के काफिले में भगवान राम के भजन गूंजते हैं। बैंड और ढोल पर रामधुन बजती चलती है। गोविल जहां जाते हैं, लोग उन पर गुलाब के फूलों की बारिश करते हैं। महिलाएं भीड़ में घुसकर उनकी आरती उतारती हैं, तिलक लगाती हैं। बच्चे, बूढ़े सभी एक बार अरुण गोविल को छूकर उनसे आशीर्वाद लेते हुए दिखते हैं।
अरुण गोविल अपनी गाड़ी में खड़े होकर हाथ जोड़कर अभिवादन करते रहते हैं। बीच-बीच में जय श्रीराम के नारे भी लगाते दिखते हैं। उनके पीछे गाड़ियों का काफिला होता है। लेकिन उसमें कार्यकर्ताओं की संख्या बेहद कम रहती है। अमूमन गाड़ियां खाली होती हैं। पूर्व सांसद राजेंद्र अग्रवाल उनके साथ नजर आते हैं। इस दौरान गोविल शहर के चुनिंदा लोगों के घर मिलने भी जाते हैं। शाम को सामाजिक संगठनों की बैठकों में भी शिरकत करते हैं।
पॉलिटिकल लीडर
- इनपुट सहयोगी : सचिन गुप्ता
- कंटेंट एडिटर : अभिषेक जय मिश्रा