आख़िर फ़ैसला हो गया कि झारखंड में झामुमो की ही सरकार रहेगी और चंपई सोरेन के नेतृत्व में सरकार शपथ लेने जा रही है। यह फ़ैसला गुरुवार लगभग आधी रात को हुआ। इसके पहले राज्यपाल ने फ़ैसला लेने में काफ़ी समय लिया। कुल मिलाकर बात यह है कि कुछ दिन पहले ही बिहार में सरकार बदलने का फ़ैसला जितना झटपट किया गया, झारखंड में उतनी ही देरी हुई।
हालाँकि यह फ़ैसला राज्यपाल को ही लेना था और यह उन्हीं का विशेषाधिकार भी है, लेकिन दो राज्यों की लगभग समान स्थितियों पर फ़ैसले में इतना अंतर क्यों? जबकि नीतीश कुमार ने जिस तरह राज्यपाल को समर्थन पत्र सौंपा था। उसी तरह झारखंड में गठबंधन नेता चंपई ने भी समर्थन सौंप दिया था।
81 सदस्यीय झारखंड विधानसभा में बहुमत के लिए कम से कम 41 विधायकों का समर्थन चाहिए, जबकि चंपई ने राज्यपाल के सामने 47 विधायकों के समर्थन का दावा किया। इनमें से भी 43 विधायकों के तो समर्थन पत्र पर हस्ताक्षर भी थे। वे तो तमाम समर्थक विधायकों को अपने साथ राजभवन तक भी ले गए थे, लेकिन राज्यपाल ने तुरंत कोई निर्णय नहीं लिया।
क़ानूनी विचार-विमर्श के कारण देरी हुई। इस देरी के बाद गठबंधन नेताओं को विधायकों की तोड़-फोड़ का डर सताया। यही वजह थी कि एक चार्टर प्लेन से सभी विधायकों को हैदराबाद ले जाने का निर्णय किया गया। वहाँ भी गठबंधन की क़िस्मत ने साथ नहीं दिया।
विधायक तक़रीबन दो घंटे विमान में बैठे रहे और आख़िरकार कोहरे के कारण यह फ़्लाइट ही कैंसिल हो गई। एयरपोर्ट से सभी विधायकों को सर्किटहाउस लौटना पड़ा। आख़िर सर्किट हाउस में ही रात गुज़ारने का निर्णय हुआ। आख़िरकार आधी रात को कोई ग्यारह बजे बाद राज्यपाल ने चंपई सोरेन को सरकार बनाने का न्योता दे दिया। संभवतया शुक्रवार को ही नई सरकार शपथ ले लेगी।