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खंडरा का ‘सरपंच’, पतला होना था, जीत गया ओलिंपिक गोल्ड:नीरज 14 की उम्र में 70 किलो के थे, जैवलिन फेंकी और बने चैंपियन

ग्राउंड रिपोर्ट

खंडरा का ‘सरपंच’, पतला होना था, जीत गया ओलिंपिक गोल्ड:नीरज 14 की उम्र में 70 किलो के थे, जैवलिन फेंकी और बने चैंपियन

पानीपत6 घंटे पहल

हरियाणा के पानीपत का खंडरा गांव। 14 साल का एक लड़का कुर्ता-पजामा पहनकर घर से निकला। उसका वजन अपनी उम्र के लड़कों से काफी ज्यादा, करीब 70 किलो था। थोड़ा आगे जाते ही गांव के कुछ लड़के मिले। वे उसे सरपंच जी कहकर चिढ़ाने लगे।

लड़के को ये बात बुरी लगी। वो उन लड़कों से भिड़ गया। फिर घर लौटा और मां से बोला कि सब मुझे सरपंच कहकर चिढ़ाते हैं। मां समझाते हुए बोलीं- कोई बात नहीं। सरपंच होना बुरा नहीं होता।

वही ‘सरपंच’ अब 26 साल का है। नाम है नीरज चोपड़ा, भारत के स्टार जैवलिन थ्रोअर और टोक्यो ओलिंपिक के गोल्ड मेडलिस्ट। नीरज से पेरिस ओलिंपिक में भी गोल्ड की उम्मीद है। 6 अगस्त, मंगलवार से उनके इवेंट शुरू होंगे।

पेरिस ओलिंपिक में नीरज चोपड़ा गोल्ड जीतते हैं तो लगातार दो ओलिंपिक में गोल्ड जीतने वाले पहले भारतीय बन सकते हैं।

गांव के बच्चों के लिए सरपंच से लेकर गोल्ड मेडलिस्ट बनने तक की नीरज की कहानी काफी दिलचस्प है। इसमें शामिल हैं उनके माता-पिता, चाचा, दादा और पुराने दोस्त। दैनिक भास्कर ने इन्हीं से नीरज की पूरी कहानी सुनी। पढ़िए उनके घर से ग्राउंड रिपोर्ट…

दादी खूब दूध-दही खिलाती थीं, 14 की उम्र में 70 किलो वजन हो गया
नीरज का गांव पानीपत से करीब 15 किलोमीटर दूर है। उनकी जॉइंट फैमली है। राज्यसभा टीवी को दिए एक इंटरव्यू में नीरज ने बताया था कि उनके परिवार में 17 मेंबर हैं। गांव में एक बोर्ड लगा है, जिस पर लिखा है- निवास स्थान, श्री नीरज चोपड़ा, विश्व ओलिंपिक गोल्ड मेडल विजेता।

नीरज चोपड़ा के गांव में लगा बोर्ड। इस गली में थोड़ा आगे जाने के बाद नीरज का घर है।

बोर्ड वाली गली से होते हुए हम नीरज चोपड़ा के घर पहुंचे। यहां हमें उनके चाचा भीम चोपड़ा मिले। वे नीरज के थ्रोअर बनने की कहानी बताते हैं।

चाचा कहते हैं, ‘हम चार भाई हैं। नीरज चारों भाइयों के बच्चों में सबसे बड़ा लड़का है। इस वजह से सबका लाडला था। हम किसान हैं, शुरुआत से घर में गाय-भैंस रही हैं। इसलिए दूध, दही, मक्खन की कमी नहीं थी। मेरी मां उसे बचपन से खूब दूध-दही, मक्खन खिलाती थीं। 14 साल की उम्र में नीरज का वजन 70 किलो से ज्यादा था।’

कुर्ता-पजामा पहनने की वजह से सभी नीरज को सरपंच कहते थे
भीम चोपड़ा आगे बताते हैं, ‘नीरज पैंट-शर्ट की जगह कुर्ता-पजामा पहनता था। इस वजह से गांव के बच्चे उसे सरपंच कहते थे। दूध, घी खा-खाकर मोटा हो गया था। उम्र के हिसाब से वजन ज्यादा बढ़ने लगा तो हमें फिक्र हुई।’

‘सारी फैमिली ने बैठकर बात की कि ऐसे तो इसका शरीर खराब हो जाएगा। इसे कहीं ट्रेनिंग कराते हैं, ताकि इसकी बॉडी शेप में आ जाए। ये दिखने में थोड़ा ठीक लगे। हमने उससे कहा कि अब जाकर जिम जॉइन करो।’

‘हमारे कहने पर उसने पानीपत जाकर जिम जॉइन कर लिया। पानीपत में शिवाजी स्टेडियम है, उसी के बगल में नीरज का जिम था। उम्र कम थी, इसलिए हम उसे छोड़ने जाते थे। कई बार ऐसा हुआ कि हम जिम पहुंचने में लेट हो गए। ऐसे में वो ग्राउंड में बैठकर हमारा इंतजार करता था।’

पानीपत का वीर शिवाजी स्टेडियम, जहां नीरज ने पहली बार जेवलिन थ्रो किया था।

‘एक बार वो स्टेडियम में बैठा था। सामने कुछ लड़के जैवलिन थ्रो की प्रैक्टिस कर रहे थे। उनमें शामिल जयवीर ने नीरज से कहा कि आओ, एक बार तुम भी ट्राई करो। नीरज ने पहली बार में ही भाला सही तरीके से और काफी दूर तक फेंक दिया। जयवीर ने उसे जैवलिन थ्रो करने की सलाह दी। नीरज का मन भी इस खेल में लग गया। उसने पंचकूला जाकर प्रैक्टिस की। फिर नेशनल कैंप में चला गया।’

ओलिंपिक से पहले ऐसी खबरें आई थीं कि नीरज की मांसपेशियों में खिंचाव आ गया है। उन्होंने जुलाई में हुई डायमंड लीग से भी नाम वापस ले लिया था।

मां बोलीं- बच्चे सरपंच कहते तो नीरज चिढ़ जाता, उनसे झगड़ लेता था
मां सरोज नीरज के बचपन के दिन याद करते हुए कहती हैं, ‘बचपन में उसका वजन अपनी उम्र की बच्चों से बहुत ज्यादा था। गांव के बच्चे उसे सरपंच कहते थे।

नीरज जीते तो मां PM मोदी को चूरमा भेजेंगी
सरोज कहती हैं, ‘पिछली बार नीरज ने गोल्ड जीता था तब मैंने प्रधानमंत्री मोदी को चूरमा बनाकर भेजा था। इस बार भी बेटे से मेडल की उम्मीद है। अगर नीरज ने मेडल जीता तो मैं फिर चूरमा बनाकर प्रधानमंत्री मोदी को भेजूंगी। हालांकि, टोक्यो ओलिंपिक के बाद भेजा चूरमा खराब हो गया था।’

वहीं, नीरज के दादा धर्म सिंह को भरोसा है कि नीरज टोक्यो के बाद पेरिस में भी गोल्ड जीतेंगे।

नीरज ने पहली बार जो भाला फेंका, वो आज भी दोस्त के पास
नीरज ने पहली बार भाला फेंका था, तब शिवाजी स्टेडियम में सन्नी सरदार भी मौजूद थे। वे बताते हैं, ‘मैं और जयवीर कुछ और सीनियर प्लेयर्स के साथ स्टेडियम में जैवलिन थ्रो की प्रैक्टिस करते थे। एक दिन हमने उसे भी जैवलिन दे दिया।’

‘नीरज का थ्रो देखकर जयवीर ने हमसे कहा था, ये लड़का कुछ कर सकता है। उसने नीरज को समझाया कि हमारे साथ प्रैक्टिस किया करो।, नीरज ने उसकी बात मान ली और रेगुलर आने लगा।’

ये सन्नी सरदार हैं। इनका दावा है कि उनके पास नीरज चोपड़ा का पहला जेवलिन है, जिस वे हमेशा संभालकर रखते हैं।

सन्नी सरदार एक जैवलिन दिखाते हुए दावा करते हैं कि ये वही जैवलिन है, जिसे नीरज ने पहली बार थ्रो किया था। सन्नी कहते हैं, ‘मैंने इस जैवलिन को संभाल कर रखा है। ये अब प्रैक्टिस करने लायक नहीं बचा है। कई थ्रोअर ने प्रैक्टिस के लिए ये जैवलिन मुझसे मांगा, लेकिन मैंने उन्हें नहीं दिया।’

फिटनेस ट्रेनर बोले- नीरज बहुत शर्मीला था
जिम में जितेंद्र जागलान नीरज को ट्रेनिंग देते थे। वे बताते हैं, ‘नीरज मेरे पास आया, तब उसका वजन काफी ज्यादा था। वो बहुत शर्मीला था। हफ्ते में कुछ दिन मैं उसे जिम में एक्सरसाइज करवाता था, कुछ दिन स्टेडियम में रनिंग के लिए ले जाता था।’

नीरज ने जिस जिम में ट्रेनिंग ली, वहां अब होटल
पानीपत के स्टेडियम के पास जिस जिम में नीरज वेट कम करने के लिए गए थे, आज वहां होटल चलता है। जिम ट्रेनर जितेंद्र जागलान कहते हैं कि कुछ साल पहले जिम बंद हो गया। मैं अब बच्चों को ग्राउंड में ही वेट ट्रेनिंग करवाता हूं।’

नीरज के जीतने के बाद हरियाणा में जैवलिन थ्रो की एकेडमी खुलीं
टोक्यो में नीरज के गोल्ड जीतने के बाद हरियाणा में जैवलिन थ्रो की कई एकेडमी खुल गई हैं। नीरज के गांव में भी नेशनल लेवल के एथलीट रहे जतिन ट्रेनिंग देते हैं। वे बताते हैं, ‘इस सेंटर पर न सिर्फ खंडरा, बल्कि दूसरे गांवों के बच्चे भी प्रैक्टिस के लिए आते हैं। यहां पर 40 से ज्यादा बच्चे एथलेटिक्स की प्रैक्टिस करते हैं।’

जतिन कहते हैं, ‘टोक्यो ओलिंपिक में नीरज के मेडल जीतने के बाद यहां हर दो गांव के बाद आपको एथलेटिक्स की एकेडमी मिल जाएगी।’

हरियाणा एथलेटिक्स संघ के पूर्व सेक्रेटरी और अभी भारतीय एथलेटिक्स संघ के जॉइंट सेक्रेटरी राजकुमार मिठान बताते हैं, ‘हरियाणा में अब सिंगल इवेंट, यानी जैवलिन की कई प्राइवेट एकेडमी खुल गई हैं। हरियाणा सरकार पंचकूला में ट्रेनिंग सेंटर चला रही है। करनाल, रोहतक, हिसार सहित कई जगह सेंटर खुल गए हैं। इनमें 40 से ज्यादा बच्चे ट्रेनिंग लेते हैं।’

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