नाग पंचमी पर सूर्य मंदिर का ताला खुलेगा क्या:हिंदू जहां पूजा करते हैं, एएसआई ने उसे मस्जिद बताया; प्रशासन ने साधी चुप्पी
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के अधीन विदिशा के प्राचीन विजय सूर्य मंदिर को लेकर नया विवाद छिड़ गया है। साल में एक बार नागपंचमी के मौके पर हिंदू धर्म के लोग इस मंदिर में बाहर से ही पूजा-अर्चना करते आ रहे हैं। इस बार हिंदू संगठनों ने मंदिर के भीतर जाकर पूजन की अनुमति मांगी, तो एएसआई ने लेटर जारी करते हुए लिखा कि ये मंदिर नहीं बीजामंडल मस्जिद है।
इसके बाद कलेक्टर ने यहां किसी तरह के पूजन की अनुमति देने से इनकार कर दिया है। इस लेटर के बाद हिंदू संगठन गुस्से में हैं। उनका कहना है कि पिछले 30 साल से यहां पूजा-अर्चना हो रही है, तब किसी ने इसे मस्जिद नहीं बताया।
हिंदू संगठनों का आरोप है कि प्रशासन और पुरातत्व विभाग मंदिर को मस्जिद बताकर मामले को जबरन तूल दे रहा है। दूसरी तरफ, प्रशासन फिलहाल मामले में चुप्पी साधे हुए हैं। पढ़िए रिपोर्ट…
ताला खोल कर अंदर पूजा करने की अनुमति मांगी
विदिशा का प्राचीन सूर्य मंदिर, जिसे विजय मंदिर या बीजामंडल के नाम से भी जाना जाता है, अभी आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के अधीन है। यहां साल में सिर्फ एक बार नाग पंचमी पर हिंदुओं को बंद ताले में पूजन की अनुमति है। इस बार हिंदू संगठनों ने 9 अगस्त के दिन नाग पंचमी पर मंदिर का ताला खोल कर अंदर पूजा करने की अनुमति मांगी थी।
कलेक्टर बुद्धेश कुमार वैद्य ने आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को पत्र लिखा। एएसआई ने जवाबी पत्र में लिखा कि 1951 के गजट नोटिफिकेशन में सूर्य मंदिर बीजामंडल मस्जिद के नाम से दर्ज है। इस लेटर के बाद कलेक्टर ने एक पत्र एसपी को लिखा और यहां किसी भी तरह के आयोजन की अनुमति न देने की बात कही।
हिंदू संगठन का दावा- 1972 में हुई थी पूजन की शुरुआत
हिंदू संगठन के शुभम वर्मा का कहना है कि प्रति वर्ष बीजामंडल मंदिर में हम बाहर से नाग पंचमी पर पूजन करते हैं। इस बार हमने ताला खोल कर पूजन की अनुमति मांगी थी। जिसके जवाब में एएसआई ने कलेक्टर को एक लेटर लिखा, इसमें उन्होंने बीजामंडल को मस्जिद बता दिया। उन्होंने यह भी लिख दिया कि यहां किसी प्रकार का पूजन नहीं हो सकता है।
बीजामंडल मंदिर को लेकर हिंदू मुस्लिम विवाद जैसी कोई स्थिति भी नहीं है। प्रशासन और एएसआई इसे बेवजह बढ़ावा दे रहे हैं। जब मंदिर को लेकर कोई विवाद नहीं है तो फिर मंदिर में बंद ताले में पूजा क्यों करवाई जाती है? हमारा तो कहना है कि भले ही सिर्फ पांच व्यक्ति जाएं, लेकिन हम अंदर जाकर ही पूजा करना चाहते हैं।
इतिहासकार बोले- एएसआई की खुदाई में भी साफ हो चुका कि ये मंदिर है
ब्राह्मण समाज के अध्यक्ष दीपक तिवारी का कहना है कि कहीं न कहीं सरकार और प्रशासन से गलती हुई है, उसे सुधारना चाहिए। बीजामंडल को लेकर हिंदू-मुस्लिम के बीच कोई विवाद नहीं है। इस मंदिर को मस्जिद बताए जाने के बाद अब विवाद उपज सकता है।
प्रशासन ने इसे मस्जिद बताया है, यह गलत है। यह सनातन मंदिर रहा है। नाग पंचमी के दिन इस मंदिर के ताले खोलने चाहिए। लोगों को दर्शन करने और पूजन करने का अधिकार मिलना चाहिए।
वहीं, इतिहासकार गोविंद देवलिया कहते हैं कि यह परमारकालीन ऐतिहासिक विजय मंदिर है। इसे सूर्य मंदिर भी कहा जाता है। वे बताते हैं कि कई साल से हिंदू समाज मंदिर के ताले खोलने की मांग करता रहा है। इसे लेकर आंदोलन भी होता रहा है। पुरातत्व विभाग की खुदाई में भी ये साफ हो चुका है कि ये मंदिर है।
मुस्लिम समाज बोला- हमारी तरफ से कोई विवाद नहीं
मोहर्रम त्योहार कमेटी अध्यक्ष चौधरी फरहत अली का कहना है कि पहले बीजामंडल ईदगाह थी, यहां पर नमाज पढ़ी जाती थी। 1965 में विवाद की स्थिति बनने पर सरकार ने इसे अपने अधीन लेकर पुरातत्व विभाग को सौंप दिया। उसके बाद ईदगाह के लिए अलग जगह दे दी गई थी। तभी से बीजामंडल को लेकर कोई विवाद नहीं है।
औरंगजेब ने 11 तोपों से मंदिर को खंडित किया था
इतिहासकारों के मुताबिक, मुगल काल के दौरान इस मंदिर पर 5 बार हमले हुए थे। 17वीं शताब्दी में मुगल शासक औरंगजेब ने 11 तोपों से मंदिर को नष्ट करने की कोशिश की थी। इस हमले में मंदिर का ज्यादातर हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया था। औरंगजेब ने मंदिर की मूर्तियों को खंडित कर उन्हें दफन कर दिया और उसके ऊपर मस्जिद का निर्माण कराया था। जिसके बाद यहां पर नमाज पढ़ी जाने लगी थी।
इतिहासकार बताते हैं कि मुगल शासन के कमजोर होने के बाद यह क्षेत्र मराठा शासकों के अधीन हो गया था। उस समय उन्होंने नमाज पर पाबंदी लगा दी थी। तब बेतवा नदी के उस पार उदयगिरी रोड पर स्थित ईदगाह पर ईद की नमाज पढ़ी जाने लगी थी।
बाढ़ में डूब गया था मंदिर, खुदाई होने पर अवशेष मिले
इतिहासकारों के मुताबिक, मराठा शासकों के बाद देख-रेख के अभाव में यह क्षेत्र वीरान होता गया। प्राकृतिक आपदा में पूरा का पूरा परिसर मिट्टी के टीले में तब्दील हो गया। 20वीं सदी के प्रारंभ में बेतवा नदी में बाढ़ आने की वजह से विजय मंदिर वाली जगह मैदान जैसी नजर आने लगी थी।
1934 में इस इलाके में खुदाई हुई, तब यहां मंदिर के अवशेष मिले। जब इस पूरे इलाके की खुदाई की गई तो यहां पर भव्य मंदिर मिला। 1934 में ही हिंदू महासभा ने विजय मंदिर के उद्धार की मांग करते हुए आंदोलन शुरू किया था। यह आजादी के समय तक चलता रहा।
इसका राजनीतिक फायदा भी हिंदू महासभा को मिला। दो बार यहां से उनके सांसद और विधायक चुने गए। यहां तक कि तत्कालीन मुख्यमंत्री तखतमल जैन और रामसहाय सक्सेना को भी हिंदू महासभा के प्रत्याशियों से हार का सामना करना पड़ा था।
साल में एक दिन नाग पंचमी को खुलते हैं मंदिर के पट
1965 में तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्र ने इस विवाद का हल निकाला। मुस्लिम वर्ग के लिए शासकीय भूमि पर ईदगाह का निर्माण कराया और विजय मंदिर का पूरा परिसर पुरातत्व विभाग के सुपुर्द कर दिया गया। जब से इस परिसर के ताले सिर्फ नाग पंचमी के दिन ही खुलते हैं। उसके बाद एएसआई ने पूरी जगह को अपने कब्जे में ले लिया।
फिलहाल, ऊपरी मंजिल पर एक परिसर के पट बंद हैं। शेष परिसर दर्शकों के लिए खुला है।
विजय मंदिर की नए संसद भवन से भी कई समानता
इतिहासकार मानते हैं कि विजय सूर्य मंदिर विदिशा की तर्ज पर ही नई संसद का निर्माण हुआ है। प्राचीन विजय सूर्य मंदिर के गेट पर निर्मित दो विशाल स्तंभ संसद के प्रवेश द्वार से मेल खाते हैं। विजय मंदिर के यदि एरियल व्यू को देखें तो यह संसद भवन की तरह ही दिखता है। दोनों की ही आकृति त्रिभुजाकार है। यदि हम इसकी ऊंचाई की बात करें तो संसद की तरह ही मंदिर की ऊंचाई भी डेढ़ सौ गज के करीब थी।