दिल्ली हाईकोर्ट ने शनिवार (10 अगस्त) को POCSO एक्ट के एक मामले में सुनवाई की। जस्टिस जयराम भंभानी ने कहा कि पॉक्सो एक्ट के तहत पेनिट्रेटिव यौन हमले और गंभीर पेनेट्रेटिव यौन हमला (जबरन किसी चीज से बच्चों के निजी अंगों से छेड़छाड़) केस महिलाओं के खिलाफ भी चलाया जा सकता है। ऐसे मामलों में जेंडर कोई ढाल नहीं हैं।
कोर्ट की टिप्पणी एक महिला की दाखिल याचिका पर आई है। उसका तर्क है कि POCSO एक्ट की धारा 3 में पेनिट्रेटिव यौन हमला और धारा 5 में गंभीर पेनिट्रेटिव यौन हमला का केस किसी महिला पर दर्ज नहीं हो सकता। क्योंकि इनकी डेफिनेशन से पता चलता है कि इसमें केवल सर्वनाम ‘वह’ का उपयोग किया गया है। जो कि पुरुष को दर्शाता है, महिला को नहीं।
महिला पर साल 2018 में केस दर्ज हुआ था। मार्च 2024 में ट्रायल कोर्ट ने उसके खिलाफ POCSO एक्ट के तहत आरोप तय किए थे। इसके बाद महिला ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा-
- पोक्सो के प्रावधानों से पता चलता है कि पोक्सो अधिनियम की धारा 3 में प्रयुक्त शब्द ‘वह’ को ये अर्थ नहीं दिया जा सकता कि यह केवल पुरुष के लिए है। इसके दायरे में लिंग भेद के बिना कोई भी अपराधी (महिला और पुरुष दोनों) शामिल होना चाहिए।
- यह सही है कि सर्वनाम ‘वह’ को POCSO अधिनियम में कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया है। POCSO अधिनियम की धारा 2(2) के प्रावधान को देखते हुए, किसी को ‘वह’ सर्वनाम की परिभाषा पर वापस लौटना चाहिए, जैसा कि IPC की धारा 8 में है।
- इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि POCSO एक्ट बच्चों को यौन अपराधों से बचान के लिए बनाया गया है। चाहे वो अपराध किसी पुरुष या महिला ने किया हो। अदालत को कानून के किसी भी प्रावधान की ऐसी व्याख्या नहीं करनी चाहिए जो विधायी इरादे और उद्देश्य से अलग हो।
- POCSO एक्ट में किसी भी वस्तु का प्रवेश बच्चों के निजी अंगों में बात है, न कि केवल शरीर का कोई अंग। इसलिए यह कहना सही नहीं है कि यौन अपराध केवल लिंग के प्रवेश तक ही सीमित है।
- POCSO एक्ट की धारा 3(ए), 3(बी), 3(सी) और 3(डी) में उपयोग सर्वनाम ‘वह’ की व्याख्या इस प्रकार नहीं की जानी चाहिए कि उन धाराओं में शामिल अपराध को केवल ‘पुरुष’ तक सीमित कर दिया जाए।
- IPC की धारा 375 (बलात्कार), दूसरी ओर पोक्सो एक्ट की धारा 3 और 5 में बताए गए क्राइम की तुलना करने से सामने आता है कि दोनों अपराध अलग-अलग हैं।