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NDA को राज्यसभा में बहुमत मिलने की संभावना:12 सीटों पर 3 सितंबर को उपचुनाव, 11 पर भाजपा और सहयोगियों की जीत संभव

NDA को राज्यसभा में बहुमत मिलने की संभावना:12 सीटों पर 3 सितंबर को उपचुनाव, 11 पर भाजपा और सहयोगियों की जीत संभव

नई दिल्ली1 घंटे पहले
चुनाव आयोग ने 7 अगस्त को राज्यसभा की 12 सीटों पर उपचुनाव का ऐलान किया था। चुनाव 3 सितंबर को होगा और नतीजे भी उसी दिन शाम 5 बजे आएंगे।

अगले महीने राज्यसभा की 12 सीटों पर होने वाले उपचुनाव के बाद NDA को सदन में बहुमत मिलने की उम्मीद है। इससे वक्फ (संशोधन) बिल जैसे अहम बिलों को मंजूरी दिलाने में मदद मिल सकेगी। 9 राज्यों खाली हुईं 12 राज्यसभा सीटों पर 3 सितंबर को उपचुनाव होंगे।

इसमें भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों को 11 सीटें मिलने की उम्मीद है। इस तरह NDA 245 सदस्यों वाले सदन में 122 सीटें हासिल कर लेगा। जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल-370 हटने और केंद्रशासित प्रदेश बनने के बाद विधानसभा चुनाव नहीं हुए हैं, इसलिए वहां की 4 सीटें खाली हैं।

इससे राज्यसभा की मौजूदा स्ट्रेंथ 241 रह जाती है। जब तक जम्मू-कश्मीर में चुनाव नहीं हो जाते, तब तक ये सीटें खाली रहेंगी। अभी राज्यसभा में बहुमत का आंकड़ा 121 है। लिहाजा उपचुनाव के बाद NDA राज्यसभा में बहुमत हासिल कर सकता है।

राज्यसभा से 4 नामित सदस्य 13 जुलाई को रिटायर हुए हैं। इन सीटों पर भी सदस्यों के नामित होने के बाद यह संख्या 126 हो जाएगी।

NDA को 7 राज्यों से राज्यसभा सीट मिलने की उम्मीद
चुनाव आयोग ने 7 अगस्त को राज्यसभा की 12 सीटों पर उपचुनाव का ऐलान किया था। इनमें 2-2 सीटें असम, बिहार, महाराष्ट्र में और 1-1 सीट हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, त्रिपुरा, तेलंगाना और ओडिशा में खाली हुई है। नतीजे भी उसी दिन यानी 3 सितंबर को शाम 5 बजे सामने आएंगे।

इन 12 सीट में से भाजपा और सहयोगी दलों को 7 राज्यों से सीटें मिलने की उम्मीद है। NDA को बिहार, महाराष्ट्र और असम से 2-2 और हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान और त्रिपुरा से 1-1 राज्यसभा सीट मिल सकती है।

इसके अलावा माना जा रहा है कि जिन 6 लोगों को राज्यसभा में नॉमिनेट किया गया है, वे भी सरकार का समर्थन करेंगे। सामान्य रूप से राज्यसभा में नामित सदस्य स्वतंत्र होते हैं, लेकिन परंपरागत रूप से वे उसी पार्टी का समर्थन करते हैं, जिस पार्टी की सरकार ने उन्हें नॉमिनेट किया है।

कैसे खाली हुई हैं राज्यसभा की सीटें
राज्यसभा की कुल 20 खाली सीट में से जम्मू-कश्मीर से 4 और नामित सदस्यों की 4 सीटें हैं। 10 सीटें राज्यसभा सांसदों के लोकसभा चुनाव लड़ने और जीतने के कारण खाली हुई हैं। इसके अलावा एक सीट भारत राष्ट्र समिति (BRS) नेता के. केशव राव के कांग्रेस में जाने से खाली हुई है।

दूसरी सीट ओडिशा से BJD सांसद ममता मोहंता के इस्तीफे के बाद खाली हुई। उन्होंने 31 जुलाई को पार्टी और राज्यसभा से इस्तीफा दिया और भाजपा में शामिल हो गईं।

राज्यसभा में भाजपा की सीटें चार साल बाद 90 से कम
राज्यसभा में सांसदों की कुल संख्या 245 है। फिलहाल राज्यसभा में 225 सांसद हैं, जबकि 20 सीटें खाली हैं। खाली सीटों में जम्मू-कश्मीर से 4 और नामित सदस्यों की 4 सीटें हैं। इन सीटों को छोड़कर बाकी 12 सीट पर चुनाव होगा।

राज्यसभा में भाजपा के पास 87 सीटें और सहयोगी दलों को मिलाकर यानी NDA के पास 105 सीटें हैं। इसमें 6 नॉमिनेटेड सदस्यों को भी जोड़ लें तो आंकड़ा 111 हो जाता है, जो बहुमत से 12 सीटें कम है। वहीं I.N.D.I.A गुट के पास 87 सीटें हैं। इंडिया ब्लॉक और NDA के इतर पार्टियों के पास 28 सीटें हैं।

राज्यसभा से 4 मनोनीत सदस्य 13 जुलाई को रिटायर हो जाने से 4 साल बाद भाजपा की स्ट्रेंथ 90 से नीचे से चली गई है।

10 साल में 55 से 101 सीटों तक पहुंची भाजपा
राज्यसभा में भाजपा 10 साल में 55 से 101 सीटों तक पहुंची है। भाजपा के 2014 में 55 और 2019 में 78 सांसद थे। जून 2020 में यह संख्या 90 हो गई। इसके बाद पार्टी ने 11 सीटें जीतीं। इससे सदस्यों की संख्या 101 तक पहुंच गई। 1990 के बाद ऐसा पहली बार हुआ था, जब किसी पार्टी ने 100 का आंकड़ा पार किया था।

राज्यसभा में किसी दल के पास स्पष्ट बहुमत होने का फायदा और नुकसान क्या है?
भारतीय लोकतंत्र में राज्यसभा का चुनाव इस तरह से होता है कि लोकसभा और राज्यसभा में किसी एक दल को एक समय पर स्पष्ट बहुमत मिलना मुश्किल होता है। अगर किसी दल के पास दोनों सदनों में स्पष्ट बहुमत होता है तो इससे छोटे-छोटे क्षेत्रीय दलों या निर्दलीय सांसदों के समर्थन के बदले अपनी अनुचित मांगों को लेकर सरकार पर दबाव की स्थिति खत्म हो जाती है।

हालांकि, इसका नकारात्मक पहलू भी है। जब किसी एक दल के पास लोकसभा और राज्यसभा दोनों में बहुमत हो तो संसदीय कामकाज में आम सहमति बनाने की स्थिति कम हो जाती है। बड़ी पार्टी अपने मन से फैसला लेती है। वह छोटे और दूसरे दलों से सलाह नहीं लेती, जो लोकतंत्र में ठीक नहीं है।

1989 तक कांग्रेस पार्टी के पास राज्यसभा में स्पष्ट बहुमत हुआ करता था। इस समय अधिकांश राज्यों में कांग्रेस की सरकार होती थी। 1989 के बाद से केंद्र सरकार को राज्यसभा में महत्वपूर्ण बिलों को पारित कराने में छोटे दलों को साधना पड़ता है या विपक्षी दलों के साथ मिलकर आम सहमति बनानी पड़ी है।

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